ग़ज़ल

ग़ज़ल

ग़ज़ल

 

सबसे रखना यारी सीखो

कुछ तो जिम्मेदारी सीखो।

 

हाथ बटा कर घर में भी तुम

लाना अब तरकारी सीखो।

 

इधर उधर की बातें छोड़ो

काम यहां कुछ भारी सीखो।

 

हंसकर बोलो जब भी बोलो

बोली तुम भी प्यारी सीखो।

 

चार दिनो का खेल जहां का

जीतें कैसे पारी सीखो।

 

पढ़ो समय से ध्यान लगा के

काम यहां सरकारी सीखो।

 

बहता सेवक पानी सा अब

कुछ तो दुनिया दारी सीखो।

रचनाकार

श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’

मालपुरा