साथियो,
वृहद हो या जातीय अथवा रंग आधारित समाज सभी में कौन, कब, कहाँ और कैसे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकता है, यह आकलन करना किसी भी विशेषज्ञ के लिए कोई मुश्किल काम नहीं। जो विद्वान, अनुभवी और पारखी दृष्टि वाले व्यक्ति होते हैं, वे किसी भी कुशल मानव संसाधन का सही मूल्यांकन कर सकते हैं और यह तय कर सकते हैं कि उसे कहाँ, किस रूप में और कैसे प्रयोग करना चाहिए ताकि समाज को उसका अधिकतम लाभ मिल सके। लेकिन जब आकलन करने के विशिष्ट कारकों से अनभिज्ञ रहकर और अपने अपरिपक्व विवेक से ऐसा करने का प्रयास किया जाता है, तो अक्सर उचित निर्णय नहीं लिए जा पाते। ऐसे में यह समाज स्वयं एक नजीर बन जाता है, जो यह संकेत देता है कि व्यक्ति तभी परीक्षण कर निर्णय लें जब वे अपने कौशल और विवेक की परिपक्वता को लेकर निश्चिंत हों।
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