भूमिका
दर्जनों पुस्तकों की रचना के मध्य अपनी अर्धांगिनी को खोने के दर्द ने एक अभियंत्रक (इंजीनियर) कृष्णदत्त शर्मा ‘कृष्ण’ को एक परिपक्व कलमकार के रूप में विकसित कर दिया।
विषय कोई भी हो और अवसर कोई, ‘कविता की मशीन’ की संज्ञा से काव्यक्षेत्र द्वारा विभूषित कवि ‘कृष्ण’ के काव्य की विशेषता यह है कि वे काव्यानुशासन की परिधि में ही अपनी रचनाओं को विकसित करते हैं। उनकी रचनाएँ हिंदी के शोधार्थियों के लिए बहुत उपयोगी हो सकती हैं। पुस्तकों में समाविष्ट पाठ्य में संकलित भावों, संवेदनाओं और संवेगों की अभिव्यक्ति में समायोजित विविध रसों और अलंकारों को शोधार्थी संदर्भ के रूप में प्रयुक्त कर सकते हैं। यह उनकी कविताओं के अंश-शोधन में चार चांद लगा दे सकने में सक्षम हैं।
उलझन सुलझन टीम
प्रस्तावना
उत्तराखंड के प्रख्यात कवि श्री कृष्णदत्त शर्मा ‘कृष्ण’ द्वारा रचित उनकी सहधर्मिणी स्वर्गीय श्रीमती कृष्णा जी की स्मृति में प्रमुख चार पुस्तकें जिनके नाम क्रमशः ‘विरह पत्रिका’, ‘गीत मनमीत’, ‘कृष्णा स्मृतिकोश’ तथा ‘इंद्रधनुषी कृष्णा काव्यामृत’ हैं। अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर अध्ययन काल में आचार्य तुलसीदास द्वारा रचित ‘विनय पत्रिका’ के संबंध में ही सुना था। यह भी अनुभव है साहित्य में श्रृंगार रस के अंतर्गत वियोग श्रृंगार का विशेष महत्व है किंतु उपरोक्त शीर्षकांतर्गत कवि कृष्ण द्वारा विरचित चारों पुस्तकों के केवल नाम ही नहीं सुने बल्कि मनोयोगपूर्वक चारों का विहंगावलोकन भी किया है। विहंगावलोकन उपरांत व्यक्तिगत रूप से मेरा यह निष्कर्ष है कि सहधर्मिणी कृष्णा के द्यूलोक गमनोपरांत कवि कृष्ण की उनकी स्मृति में इनके मनोगत भावों की गहराई का सर्वेक्षण करना सर्वथा असंभव प्रतीत होता है।
महासागर की गहराई की भांति इनके पत्नी संबंधी वियोग अथवा विरह राग की गंभीरता अथवा गहराई का मापन भी असंभव है।
प्रथम रचना ‘विरह पत्रिका’ में इनकी अभिव्यक्ति को जो विराट रूप मिला है उसी में ऐसा प्रतीत होता है कि शायद ही इससे आगे पारस्परिक प्रेम में कोई बात शेष रह गई हो किन्तु इस विपुल रचना के पश्चात् इनकी दूसरी रचना ‘गीत मनमीत’ में कवि कृष्ण ने पहली ही कविता को इतना विस्तृत आकार दिया है कि पहली ही कविता में पाठक को अष्टपदी दो पद पढ़ने पर ही ऐसा आभास होता है कि आगे क्या लिखा होगा? तथा क्या वह मार्मिक हो सकता है? मुखड़े की दो पंक्तियां इतनी आकर्षक हैं कि उनको पढ़ते ही पूर्ण कविता को पढ़ने का मन बनता है; जैसे-
“मन मंदिर में बसी हो कृष्णा
बाहर नहीं तुम आने कीं
ऐसी आदत डाल गईं तुम
नूतन गीत बनाने की “
आश्चर्य तो इस बात का है कि जहाँ कविता में सोलह पंक्ति लिखने पर भी मुखड़े को पुनरावृत्ति करना कठिन हो जाता है। इन्होंने अपनी इस षट्पदी रचना में मुखड़े सहित जो आठ पंक्तियों के पद रचना की है ऐसी चौबीस सौ अड़तालीस पंक्तियों अर्थात् तीन सौ ग्यारह पदों में मुखड़े की यथावत अत्याकर्षक एवं मनमोहक पुनरावृत्ति के दर्शन होते हैं।
इस काव्य पुस्तक में तीन सौ ग्यारह पदों वाली इस रचना के साथ ‘देवलोक में’, मुक्तक ‘कुछ कुह कोयल’, ‘मन को कृष्णे’, ‘नैनों के गहरे सागर’, ‘मैं करता प्यार’, ‘शादी की वर्षगांठ’, ‘7 जुलाई 2019’, ‘एक बार तो आकर देखो, ‘अब देख कभी न पाऊँगा’, ‘मैं अकेला’, ‘भावुक हृदय’, ‘यादें’, ‘हे नाथ’, ’25 जनवरी 2020′, ‘जन्मदिवस’ इतना मर्मस्पर्शी कि कृष्णा की स्मृति में लिखी हुई उपरोक्त कविताएं स्वर्गीय पत्नी की स्मृति को अमर बनाने में अद्वितीय प्रयास हैं।
स्वर्गीय कृष्णा जी ही के वियोग में कवि कृष्ण की तीसरी प्रसिद्ध रचना ‘कृष्णा स्मृतिकोश’ है जो वियोग में लिखी गई पूर्व की दो रचनाओं के कीर्तिमान के आरेख को ऊर्ध्व गति की ओर अग्रेषित करती हुई दिखाई देती हैं। एक सौ चवालीस पृष्ठीय इस काव्यकृति में कवि कृष्ण ने समस्त काव्य गुणों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। पूर्व काव्य पुस्तक ‘गीत मनमीत’ की भांति इसमें भी ‘आकर समझाया’ शीर्षकांतर्गत लिखी दस पंक्तियों वाले पद वाली रचना में अनेक पदों का समावेश किया गया है, जबकि लगभग बीस-बाईस शीर्षकों से अन्य कविताएँ कृष्णा जी की स्मृति में कृष्ण के मनोभावों को स्पष्ट करती हुई पठनीय कविताएँ हैं।
चौथा विशिष्ट काव्यकृति ‘इंद्रधनुषी कृष्ण काव्यामृत’ भी कृष्णा जी की स्मृति संबंधी काव्यधारा को विस्तार देते हुए उनके काव्य कौशल को ऊर्ध्व गति देने में सार्थक सिद्ध होती है। इसमें प्रकृति के सर्वोत्कृष्ट रंगाकार में आकाश में आच्छादित इंद्रधनुषी रंगों के समान बहुरंगी कविताओं को अभिव्यक्त किया गया है। सहधर्मिणी के स्थान पर काव्यकृतियों को ही उनका पर्याय मानकर कवि कृष्ण ने नया जीवन प्रारंभ किया है। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि कृष्णा जी के चिरवियोगोपरांत उनकी कविताएँ ही चिरसंगिनी बन गई हैं। ईश्वर उन्हें शताधिक वर्षों का जीवन प्रदान करे ताकि आजीवन उनके द्वारा स्वीकृत एवं उनके द्वारा प्रवर्तित कृष्णा को काव्य का माध्यम मानकर जो सृजनात्मक विशिष्ट कार्य (काव्य रचना) निरंतर उनकी अभिरुचि का मुख्य अंग बना है। उनमें उन्हें वर्तमान की भांति भविष्य में भी उनकी अपेक्षानुरूप पूर्ण सफलता मिलती रहे। शुभ कामनाओं के साथ …..
डॉ. देशराज सिंह
(पूर्व प्रधानाचार्य)
कृतियां
विरह पत्रिका
‘विरह पत्रिका’ विरह पीर से भरा हुआ पाया भण्डारा।
बिछड़न पीर विरह क्या होती भरा हुआ शब्दों में न्यारा।
काया नश्वर माया नश्वर कहते जग में सब पाये हैं,
लेकिन पीर विरह का दुखड़ा समझा मात्र विरही सारा।
गीत मनमीत
गीत गाये मनमीत हेतु जो उनका रस है महा निराला।
‘मनमीत गीत’ पढ़ने वाला ही मात्र पियेगा ये रस प्याला।
विरह वेदना भाव अनूठे जो बसते हृदय प्रांगण में,
वक्त विरह का जब आता है जाता नहीं किसी से टाला।
कृष्णा स्मृतिकोश
अमर कोश कृष्णा स्मृति हृदय को उद्वेलित करता।
कृष्णा नाम अधर पर आकर अनायास नयनों को भरता।
कोश यह स्मृति ऐसा मन के साथ साथ चलता है,
कम नहीं कोश कभी होता है दिन दूना पाया है बढ़ता।
इन्द्रधनुषी कृष्णा स्मृति काव्यामृत
इन्दुधनुषी काव्यामृत में स्मृतियों का महा खजाना।
कृष्णा की स्मृति इसमें गाती मिली विरह का गाना।
मीठा-मीठा अमृत जैसा स्वाद भरा कृष्णा यादों का,
स्मृति के तो भाव अमर हैं शब्दों के गुच्छे ने माना।
कृष्ण
31 दिसंबर, 2024