जाला कीट के प्रकोप से किसानों की परेशानी बढ़ी

जाला कीट के प्रकोप से किसानों की परेशानी बढ़ी

दैनिक जागरण प्रतिनिधि नीरज सिंह राठौर के अनुसार बीकेटी विकासखंड में करीब ढाई दशक पहले, फलदार वृक्षों और सब्जी की खेती के विकास को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस क्षेत्र को फलपट्टी घोषित किया गया था। इससे पहले मलिहाबाद, काकोरी और माल क्षेत्र भी फलपट्टी घोषित किए जा चुके थे। इन अधिसूचित क्षेत्रों में बागवानी के विकास के लिए सरकार ने अकूत धनराशि व्यय की, जिसमें किसानों को प्रशिक्षण, कीटनाशक प्रबंधन और अन्य सुविधाएं प्रदान की गईं।

विडंबना यह है कि इतनी सुविधाओं और सरकारी योजनाओं के बावजूद, जानकारी के अभाव में इन क्षेत्रों में जाला कीट के प्रकोप ने बागवानी को गंभीर नुकसान पहुंचाया है।

फलपट्टी क्षेत्रों में बागवानी की सुरक्षा, कीटनाशक प्रबंधन, रखरखाव और प्रगतिशील खेती के लिए उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग और केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान कार्यरत हैं। आम की बागवानी के विकास के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च करती है। इसके बावजूद लखनऊ के मलिहाबाद, काकोरी, माल और बीकेटी फलपट्टी क्षेत्रों में जाला कीट का प्रकोप बेकाबू हो गया है।

आम के पेड़ों पर जाला कीट का भयंकर प्रकोप है। खासकर माल क्षेत्र के मंझी और पुरवा गांवों में इस कीट के कारण आम का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। फलोत्पादन घटने की वजह से कई किसानों ने तो अपने बागों तक को कटवा दिया है।

जाला कीट से बचाव के लिए किसान बड़े पैमाने पर हानिकर कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं, जिससे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

कृषि विशेषज्ञ डॉ. सतेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि आम पर जाला कीट का प्रकोप सितंबर से शुरू हो जाता है और अक्टूबर-नवंबर तक यह 80-90 प्रतिशत फसल को नुकसान पहुंचा सकता है। इस कीट को ‘टेंट कैटरपिलर’ भी कहा जाता है। यह पत्तियों पर लार निकालकर जाल बनाता है और उन्हें तेजी से खा जाता है।

डॉ. सिंह ने जाला कीट प्रबंधन के उपाय बताते हुए कहा कि लैम्डा साईहेलोथ्रिन नामक कीटनाशक की 1 एमएल मात्रा को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

फलपट्टी क्षेत्रों में जाला कीट का प्रकोप न केवल बागवानी को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि किसानों की आय पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। किसानों को सही समय पर जानकारी और तकनीकी सहायता प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि वे इस समस्या से प्रभावी ढंग से निपट सकें।

सूचना स्रोत

पूजा किसान सेवा केंद्र और कृपा फाउंडेशन

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