आज दिनांक 28.06.2025, दिन शनिवार को होली चाइल्ड पब्लिक इण्टर कॉलेज, जडौदा, मुजफ्फरनगर के सभागार में शिक्षक कार्यशाला ‘शिक्षक राष्ट्र निर्माता’ का शुभारम्भ मुख्य अतिथि डॉ. प्रेरणा मित्तल, मुख्य वक्ता स्वामी तेजस्वरानन्द, मनोविज्ञान प्रोफसर डॉ. ममता अग्रवाल, प्रधानाचार्य सरस्वती शिशु मंदिर भुजेन्द्र कुमार, प्रभारी जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ. रणवीर कुमार, डॉ. राजीव कुमार, रजनीश कुमार, अनिल शास्त्री, मौ. हाशिम, प्रधानाचार्य प्रवेन्द्र दहिया आदि के सान्निध्य में दीप प्रज्वलित कर किया गया।
कार्यशाला में विभिन्न विद्यालयों के छियासी शिक्षकों ने प्रतिभाग करके अतिथियों एवं वक्ताओं के मार्गदर्शन से अपने आपको सिंचित किया और सभी शिक्षिकों को कार्यशाला प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया गया।
इस मौके पर डॉ. प्रेरणा मित्तल ने बताया कि
“बच्चों को धर्म और जाति से अलग रखके एक अच्छा इंसान बनाने का हम सभी को प्रयास करना चाहिए। शिक्षक का योगदान समाज में न कभी कम हुआ है, न होगा। बच्चों का उज्ज्वल भविष्य बनाने के लिए हमें निरन्तर लगनशील रहना होगा और विद्यार्थियों को इंसानियत का पाठ पढाकर उन्हें बेहतर इंसान बनाना होगा।”
स्वामी तेजस्वरानन्द द्वारा अपने सम्बोधन में कहा गया कि
“समाज में तीन तरह के शिक्षक होते है माता, पिता और गुरु। माता पहली शिक्षक है क्योंकि वो तीन प्रकार की परिस्थितियों में बच्चों को संस्कारवान बनाती है। पहला जन्म के समय, दूसरा जब बच्चा बडा हो रहा हो, तीसरा जब वह युवा से वृद्धावस्था की ओर बढ रहा हो। बालक कच्ची स्लेट की तरह से है जैसा हम उसे बनाना चाहते है वो वैसा ही बनेगा। स्वामी दयानन्द सरस्वती के अनुसार शिक्षक वह है जो सुसंस्कारिक सैनिक तैयार करके राष्ट्र निर्माण करता है। हमें विद्यार्थियों को बालकपन से ही संस्कारों की संस्कारवान बनाने और संस्कारित बनाने की शिक्षा समय-समय पर देते रहना चाहिए, क्योंकि बालकपन से ही बच्चे के मन पर अच्छे विचारों की छाप लगातार पडते रहने से ही उसके संस्कार सुदृढ बनते हैं।”
डॉ. ममता अग्रवाल ने कहा कि
“मनोविज्ञान स्वयं में एक दर्शनशास्त्र है, प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक अब्राहम मास्लो के अनुसार मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास शारीरिक, सुरक्षा, भावात्मक, मानसिक और आत्मसिद्धि के आधार पर आधारित है। एक शिक्षक को बच्चों के साथ ऐसी बाउन्डिंग बनानी चाहिए जिससे वह अपनी मन की बातों को एक शिक्षक के समक्ष रख सके और वह शिक्षक को अपना हितैषी समझे और शिक्षक को भी अपने विद्यार्थियों को मित्र तो बनाये लेकिन घनिष्ठ मित्रता न निभाये, अन्यथा विद्यार्थी अपनी मर्यादा लांघ सकते हैं। विद्यार्थियों से न ज्यादा नजदीकी सही, न ज्यादा मित्रवत व्यवहार। समय-समय पर शिक्षकों को विद्यार्थियों को अच्छे कार्य करने पर प्रेरित करके उनकी प्रशंसा करनी चाहिए जिससे विद्यार्थी भविष्य में श्रेष्ठ कार्य करने के लिए प्रेरित रहें। बच्चों के साथ महान विभूतियों की कहानियां और प्रेरित करने वाले उद्धरण सुनाने चाहिए। यदि विद्यार्थी का पढाई में मन नहीं लग रहा है तो उसके मनोभाव को समझने का प्रयास करना चाहिए कहीं उसके समक्ष कोई समस्या तो उत्पन्न नहीं हो रही है।”
प्रभारी जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ. रणवीर सिंह ने बताया कि
“नई शिक्षा नीति 2020 से सरकार इस विषय पर काम कर रही है कि विद्यार्थियों को प्रयोगात्मक के माध्यम से किसी भी विषय को पढाये ताकि बच्चा उस विषय को आत्मसात कर सके। हम आज के समय में विद्यार्थियों को डिजिटल माध्यम, पी.पी.टी.और शिक्षण अधिगम सामग्री के माध्यम से श्रेष्ठतम पढा सकते हैं।”
भुजेन्द्र कुमार ने अपने सम्बोधन में बताया कि
“साधारण लोग राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकते, इसलिए शिक्षक साधारण नहीं है, शिक्षक का सम्मान कभी समाप्त नहीं होता क्योंकि शिक्षक ही राष्ट्र निर्माता के रूप में कार्य करके राष्ट्र को ज्ञानवान, सुदृढ और सशक्त बनाते है। शिक्षक कक्षा में विद्यार्थियों को आनन्द के साथ सिखाये और स्वयं भी शिक्षण कार्य में आनन्द लें। विद्यार्थियों को उनके विषय में रुचि लेने के लिए उस विषय से सम्बन्धित कहानी और चित्रण बनाकर विद्यार्थियों के सामने प्रस्तुत करने चाहिए इससे विद्यार्थी प्रत्येक विषय में रुचि लेकर मन से सीखता है।”
प्रधानाचार्य प्रवेन्द्र दहिया ने अपने सम्बोधन में कार्यशाला में उपस्थित सभी अतिथियों एवं शिक्षकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि
“एक शिक्षक की बॉडी लेंगवेज, ड्रैस सेन्स, उत्साह और उसका ज्ञान एक शिक्षक को पूर्णता की ओर ले जाता है। एक शिक्षक को कक्षा में पढाने से पहले स्वयं भी स्वाध्याय करना चाहिए ताकि वह अपने विद्यार्थियों से तारतम्यता बनाये रखें।”
कार्यशाला में श्री अनिल शास्त्री, कुलदीप सिवाच, संजय आहूजा, मौ. हाशिम, चन्द्रपाल सिंह, काजल सिंह, अदिति दहिया ने भी अपने विचारों से शिक्षकों को समृद्ध किया।
चित्रदीर्घा
सूचना स्रोत
श्री प्रवेंद्र दहिया जी
प्रस्तुति