भारत में उत्तर प्रदेश राज्य में मेरठ जनपद के निवर्तमान महापौर सुशील जी ने कहा—
“सहायता से ज़्यादा ज़रूरी है साथ, और वो भी नि:स्वार्थ!!”,
तो यह वाक्य केवल औपचारिक संदेश नहीं, बल्कि अनुभव की गहराई से निकला भाव प्रतीत होता है।
संभावना है कि उस समय उनकी मनःस्थिति कुछ इस प्रकार रही हो—
वे सोच रहे होंगे कि संकट, संघर्ष या चुनौती के समय किसी को आर्थिक या भौतिक सहायता देना निश्चित ही महत्त्वपूर्ण है, लेकिन उससे भी अधिक मूल्यवान है किसी के साथ खड़े रहना, उसके दुःख-सुख में सहभागी बनना। यह “साथ” केवल औपचारिक उपस्थिति नहीं, बल्कि दिल से जुड़ाव और भावनात्मक सहारा है। और यदि यह साथ किसी स्वार्थ, अपेक्षा या लाभ की भावना के बिना दिया जाए, तो उसका असर जीवनभर महसूस होता है।
शायद उनके अनुभव ने उन्हें यह अहसास कराया होगा कि पैसा, संसाधन और वस्तुएँ क्षणिक राहत दे सकती हैं, परंतु सच्चा, नि:स्वार्थ साथ व्यक्ति को मानसिक शक्ति, आत्मविश्वास और जीने की प्रेरणा देता है।
आइडिया 💡
महापौर सुशील जी गुर्जर
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