हिन्दी का गौरव
हिन्दी भाषा ज्ञान महान,
हिन्दी बोले हिन्दुस्तान।
शब्दों में गंगा की धार,
हिन्दी सात समुन्दर पार।
कण-कण में इसकी पहचान,
मिट्टी जैसी इसकी शान।
गायन-नर्तन, गीत-अलाप,
विश्व में हिन्दी का प्रताप।
हिन्दी में विकसित विज्ञान
मीरा-तुलसी का है गान।
भारत आत्मा की है शान,
हिन्दी सबकी है पहचान ।
हिन्दी से जग में सम्मान,
जग में हो जाता कल्याण ।
भारत बना हुआ निष्काम,
हिन्दी से संस्कृति अभिराम।
हिन्दी से जुड़ते मन प्राण,
हिन्दी से भारत उत्थान ।
बोली सरल सहज गुणवान,
हिन्दी भारत का अभिमान।
हिन्दी माँ की मधुर पुकार,
मिलता हिन्दी से संस्कार।
हिन्दी ही जीवन का गान,
हिन्दी है भारत का प्राण।
रचयिता
डाॅ. छाया शर्मा, अजमेर, राजस्थान
💥💐कलम💐💥
हे कलम इतना लिख, लिख-लिख, इतना लिख,
मन में आए भाव लिख, विचार लिख सत्कार लिख,
सत्य लिख, न्याय लिख, हे कलम इतना लिख!
प्रेम लिख, सदव्यवहार लिख, आस्था लिख, सद्भाव लिख।
न्याय लिख, मंगल लिख, अन्याय का, प्रतिकार लिख।
रीति लिख, नीति लिख, अनीति का प्रतिरोध लिख।
संवेदना मन के, उदगार लिख, सोच लिख, पहचान लिख।
रिश्तों की, जंजीरें लिख, आचार लिख, विचार लिख।
नियमों का, संचार लिख परंपरा की, पहचान लिख।
शासन लिख, प्रशासन लिख, निश-दिन, नवाचार लिख।
रिश्तों की पहचान लिख, नीति का बदलाव तो लिख।
है कलम इतना लिख, धर्म लिख, अधर्म का प्रतिकार लिख,
आवाम का दु:ख-दर्द लिख, युक्ति लिख, प्रयुक्ति लिख।
जीवन की सार्थक सूक्ति लिख, सौहार्द लिख, परमार्थ लिख।
रहम लिख, संयम लिख, सांप्रदायिक सद्भव तो लिख।
मंत्र लिख स्वतन्त्र लिख, सेवा का सद्मार्ग भी लिख।
रिद्धि लिख, प्रसिद्धि लिख, प्रतिष्ठा का संबोधन लिख।
ज्ञान लिख, विज्ञान लिख, विशिष्ट योग की सिद्धि लिख।
सृष्टि का विस्तार लिख, सहयोग लिख, वियोग लिख।
मान लिख, सम्मान लिख, संयम का संयोग लिख।
लिख-लिख, मानवता लिख, संगम का साकार तो लिख।
ख्याति लिख, परामर्श लिख, हे कलम इतना तो लिख।
🌺हिन्दी दिवस🌹 (दोहावली)

हिन्द पर हम गर्व करें,हिन्दी सबकी शान।
विश्व धरा पर गूंजता,जय-जय हिंदुस्तान ।।1।।
जितना संभव हो सके,हिन्दी में हो बात।
हिन्दी का प्रचार करें,सारे दिन ओ रात ।।2।।
सम्मानित भाषा सभी,सबका हो सम्मान।
शुद्धता हो व्यहार में,हो हिन्दी का मान ।।3।।
हिन्दी भाषा हिंद की,शोभा देती मान।
सरस-सरल मीठी लगे,सरगम की मधु तान ।।4।।
हिन्दी के बिन भारती,नहीं पूर्ण शृंगार।
हिन्दी की बिंदी हटे,शुद्ध नहीं शृंगार ।।5।।
दैनिक जीवन में करें,सत्य वचन से बात।
हिन्दी को अपना रहै,मनोयोग के साथ ।।6।।
प्रेमचंद की लेखनी, लिखी जग व्यवहार।
कृष्ण-भक्ति रसखान की,तुलसी का उद्गार ।।7।।
मीरा-कबीर-सूर की, पदावली वरदान।
देवनागरी में लिखी, हिन्दी अद्भुत शान।। 8।।
चौपाई पद छंद में,कुण्डलिया निर्माण।
रस अनेक शामिल हुए,सबके रचे प्रमाण ।।9।।
💢कुण्डलियाँ💢
आधुनिकता व्यर्थ बढ़ी,खर्च दिखावा नोट।
भूल गये संस्कार भी,कितना किसमें खोट।।
कितना किसमें खोट,अंग शरीर दिखलावे।
न शर्म मां-बाप की,फुहड़ फैशन अपनावे।।
कह कवि नायक बंधु,न बिगड़े सामाजिकता।
सभ्यता प्रतीक बन,सद चरित्र आधुनिकता।।
अपनी कमी न मानते,कहे आपकी खोट।
इक दूजे को कोसते,बात करे सब ओट।
बात करे सब ओट,बातें मुकरते जाये।
होनि अनहोनि करे,व्यर्थहि झगड़ते पाये।।
कह कवि नायक बंधु,बकवास थौथी कथनी।
सुनना सीखा नहीं,बात बड़ी रखे अपनी।।
‘नायक’ बाबूलाल नायक
दोहे
हिंदी भाषा एक है, लेकिन रंग अनेक।
सुंदर जिसकी है लिपी,बोली सबसे नेक।।
संतों की वाणी जिसे, हिंदी कहते लोग।
जिसमें बनता है सदा,ईश मिलन संयोग।।
मीरा की जो पीर है,कबीर के निज छंद।
हिंदी को सब इसलिए,कहते हैं मकरंद।।
हिंदी भाषा छांव है,ममता का है छोर।
प्यारे भारत देश का,है प्यारे सिरमोर।।
हिंदी को मां मान लें, उर्दू मौसी जान।
संस्कृत नानी भली,ले इनको पहचान।।
निज भाषा को लिख रहे,अंग्रेजी में आज।
कैसे हम कहते फिरै,है हिंदी पर नाज।।
राज काज में हो रहा,पर भाषा उपयोग।
सबसे ज्यादा कर रहे, शिक्षित अपने लोग।।
गांवों में पढ़ते सदा,हिंदी का अखबार।
ख़बरें पढ़ते शान से,जो होती दमदार।।
🌹कुण्डलिया🌹
पानी पानी हो गया,भू पर चारों ओर।
फैला हाहाकार है,बारिश का जब दौर।।
बारिश का जब दौर,हुए सब बांध लबालब
मार्ग हुए अवरूद्ध,बही जब नदियां भी सब।
कह सेवक कविराय,आई बहु परेशानी
देख धरा का हाल,हुआ जग पानी पानी।
पानी भू पर मांगता,बहने की निज ठौर।
इसीलिए ही कर रहा, क्रोधित होकर शोर।।
क्रोधित होकर शोर,बंद जब पथ को पाया
कर खुद प्रचंड वेग ,काल बनकर फिर छाया
कह सेवक कविराय,जिसे कहते हम दानी
तोड़ गया मन मेड़,बहा जब जमकर पानी।
रचयिता
श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’
मालपुरा
प्रस्तुति