कुण्डलिया छंद

कुण्डलिया छंद

आसमान में छा रही, लालीमा चहुं ओर
हुई अभी यह सांझ है, या है ये फिर भोर।
या है फिर ये भोर, अब खिली कली कली है
सूरज है चित्रकार, रंगता गली गली है।
सजी धजी है भूमि, सूरज के सम्मान में
गाते पंछी राग, देख लो आसमान में।

रचयिता

श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’

मालपुरा

प्रस्तुति