महासमर

महासमर

भूमिका

समाज में निरंतर हो रहे बदलावों के बाद बन रही स्थिति से आशंकित कवि ने सारगर्भित तरीके से अपनी व्यथा और स्थितियों को आकार कविता के माध्यम से देने का प्रयास किया है।

कविता ‘महासमर’

महाभारत का शंखनाद फिर होना है तो होने दो …

नहीं द्रोपदी आज सुरक्षित, दुर्योधन है हर मन में ,

चीर हरण होता है पल-पल, नष्ट हुए इस जीवन में ।

अगणित वेश और चेहरे है, आंखों में बर्बरता है ,

क्रूर कर्म करने को आतुर, भरी दुष्टता तन-मन में।।

जंघा पर प्रहार करों तुम, रक्त के आंसू रोने दो …

महाभारत का शंखनाद फिर होना है तो होने दो …

 

हर नारी को बना द्रोपदी, नग्न कर्म का जतन करे,

लज्जा, सत्य, शीलता हरकर, मानवता का हनन करे।

क्यों तुम भीष्म-द्रोण की भांति कायरता दिखलाते हो,

सिंहासन की लोलुपता जो, न्याय-मार्ग का क्षरण करे।।

भस्मीभूत अन्याय समर्थक कालकूट से होने दो …

महाभारत का शंखनाद फिर होना है तो होने दो …

 

उदासीनता त्याग नहीं तो, कल तेरी बारी होगी,

आज द्रोपदी नग्न हुई , पर कल तेरी नारी होगी।

महाभारत से बचना तेरी नियति नहीं कायरता है,

युद्ध लड़ेगा तो जीतेगा, विजय शस्त्रधारी होगी।।

Purpose of the figure is to show survival of the fittest

विमुख न्याय जो सर ,स्कंध-विलग ही होने दो …

महाभारत का शंखनाद अब होना है तो होने दो …

 

…dAyA shArmA