यकृत (लीवर)
कमजोरी, पथरी, पीलिया और मधुमेह के रोग
परिचय
यकृत, जिसे जिगर या लीवर भी कहा जाता है, शरीर की समस्त ग्रन्थियों में सबसे बड़ी रसवाहक ग्रन्थि है। इसका वजन शरीर के कुल वजन का लगभग 4 प्रतिशत होता है, यानी लगभग पौने दो किलो। यह पेट के दाहिने भाग में, वक्ष और उदर के मध्य स्थित होता है और पाचन, अभिशोषण तथा मल निष्कासन जैसी कई महत्वपूर्ण क्रियाओं का संचालन करता है। आंतें, आमाशय, क्लोम, प्लाज़्मा और रक्त—ये सभी अप्रत्यक्ष रूप से लीवर के नियंत्रण में कार्य करते हैं।

मुख्य कार्य
यकृत का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है पित्त का निर्माण, जो लगातार होता रहता है। उत्तम पाचन के लिए यकृत को प्रतिदिन लगभग आधा से एक किलो पित्त का निर्माण करना चाहिए। पित्त को संग्रहित करने के लिए प्रकृति ने एक नाशपाती आकार की थैली, जिसे पित्ताशय (गाल ब्लैडर) कहते हैं, लीवर के नीचे स्थित की है। पित्त नलिका यकृत से निकलकर छोटी आंत में मिलती है। जब पाचन की आवश्यकता नहीं होती, तब यह रास्ता बंद हो जाता है और पित्त पित्ताशय में संग्रहित हो जाता है। आवश्यकता पड़ने पर यह छोटी आंत में चला जाता है।
पित्त एक शक्तिशाली पाचक रस होने के साथ-साथ एक विषैला तत्व भी है। यह क्षारमय होता है, वसा को पचाता है तथा आंतों को उद्दीप्त करता है। लीवर न केवल पाचन क्रिया को सक्रिय बनाए रखता है, बल्कि अन्य पाचक रसों को भी प्रेरित करता है। इसका रंग गहरा सुनहरा या पिस्तई होता है और स्वाद में कड़वा।
लीवर के कार्यों में बाधा और उसके दुष्परिणाम
लीवर के चार मुख्य कार्य होते हैं, जो इसे हर समय एकसाथ करने पड़ते हैं:
1. शरीर की गंदगी निकालना
2. पित्त का निर्माण
3. शर्करा को ग्लाइकोजन में बदलकर संग्रह करना
4. शरीर में प्रवेश किए विषों को निष्क्रिय करना
यदि इन कार्यों में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न होती है, तो शरीर विभिन्न रोगों से ग्रस्त हो सकता है:
– गंदगी न निकल पाने पर लीवर सूज जाता है
– पित्त निर्माण में रुकावट से पीलिया या पथरी हो सकती है
– शर्करा नियंत्रण गड़बड़ाने पर मधुमेह (शुगर) हो सकता है
– विष निष्क्रिय न होने पर शरीर कमजोर हो जाता है
पित्त दोष और यकृत विकार के कारण
गलत खानपान अर्थात् पहला हजम हुआ नहीं पर दोबारा खाना, अधिक भोजन, गरिष्ठ खाद्य पदार्थों का सेवन, बिना मेहनत किए खाना, मादक द्रव्यों और औषधियों का अत्यधिक उपयोग आदि कारणों से पाचन पर अत्यधिक भार पड़ता है। कब्ज की स्थिति में निष्कासन अंग जैसे त्वचा और बड़ी आंत अपना कार्य पूरा नहीं कर पाते, जिससे उनका कार्य लीवर पर आ पड़ता है। इस प्रकार लीवर पर दबाव बढ़ जाता है और वह ठीक से पित्त नहीं बना पाता। परिणामस्वरूप विष शरीर में एकत्र हो जाते हैं और व्यक्ति अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाता है।
उपचार
– धैर्य और विश्वास के साथ 2-5 दिन का उपवास करें (जब तक कब्ज न दूर हो जाए)
– सुबह-शाम पेडु पर गीली मिट्टी की पट्टी और सादे पानी का एनीमा दें
– मौसम के अनुसार नींबू-शहद मिश्रित पानी बार-बार चम्मच से लें
– फिर 2-3 दिन रसाहार लें, उसके बाद एक सप्ताह फलाहार
– उसके बाद आहार में फल, सलाद, उबली हरी सब्ज़ियाँ, मट्ठा, दही और शहद को प्रमुखता दें; श्वेतासार (स्टार्च) युक्त पदार्थ कम करें
अन्य सहायक उपाय
– यकृत के स्थान पर नियमित मालिश और गर्म-ठंडी सेंक
– भाप या धूप स्नान
– गहरी श्वास के व्यायाम
– सुबह-शाम टहलना
– स्नान से पूर्व सूखे तौलिए से त्वचा पर घर्षण
– पीली बोतल में सूर्य तप्त जल—50 ग्राम की छह खुराकें
– सप्ताह में एक बार भाप या धूप स्नान
विशेष ध्यान दें
किसी भी रोग के इलाज में सबसे पहले उसके कारण को पहचानना जरूरी है। जब तक कारण नहीं हटेगा, तब तक कोई भी उपचार पूर्ण प्रभावी नहीं होगा। इसलिए कारण को हटाकर उपचार करना ही सर्वोत्तम उपाय है।
आइडिया
श्री सत्यपाल सिंह जी
पाठ्य विस्तार
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