मनहरण घनाक्षरी और विधाता छंद

मनहरण घनाक्षरी और विधाता छंद

मनहरण घनाक्षरी

सुनो आप मेरी बात, पाक को है देना मात
विदेशी ब्रांड छोड़ के, देशी अपनाइए।

प्रेम से देश को जोड़ो, लोभ लालच को छोड़ो,
राम राज्य भारत में, फिर से सजाइए।

भारत को जग जाने, बात हमारी भी माने,
विश्व गुरु की पदवी, फिर से दिलाइए।

वीरों का साथ देकर, आतंक को दूर कर,
हाथ में तिरंगा रहे, विजय बनाइए।

विधाता छंद

लड़े जो देश के खातिर, उसी को वीर कहते हैं
डटे रण में रहे जो जन, उन्हें रणधीर कहते हैं।
हटाकर लोभ लालच को, रहें हम प्यार से सारे
मिलेगी जीत हमको ही,यही अब बात हम धारें।

रचयिता

श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’

मालपुरा

प्रस्तुति