मुकेश कुमावत जी की कलम से

मुकेश कुमावत जी की कलम से

अनोखी बातें

उठकर चलना, चलकर गिरना, गिरकर उठना,
उठकर फिर चलना, यही संघर्ष की कहानी है,
हँसकर बोलना, बोलकर हँसना, तोलकर कर बोलना,
बोलकर तोलना यही सच्ची जिंदगानी है।

मिलकर रहना, रहकर मिलना, लिखकर सीखना,
सीखकर लिखना, यही गुरु की सच्ची जुबानी है,
जाग कर सोना, सो कर जागना, भागकर पाना,
पाकर भागना यही जीवन की सच्ची कुर्बानी है।

धरती पर जन्म लेना, जीवन जीकर मरना,
जन्म-मरण की यही सच्ची कहानी है,
दुःख में सुमिरन, सुमिरन से सु:ख पाना,
सु:ख-दु:ख की कहानी बहुत पुरानी है।

कुछ पाकर खोना, खोकर फिर कुछ पाना,
पाकर जीवन बढ़ाना, यही सफलता की कहानी है,
अंहकार में बुद्धि घटना, बुद्धि घटने से अज्ञानी होना,
अज्ञानी होना ही जीवन बर्बादी की निशानी है।।

प्यारी बहिना (राजस्थानी में)

विधा गीत

बहिना मारी रोती जावे,ऑंसुड़ा ढ़लकाव जी,
सासू ईकी ताना मारे,नन्दलिया धमकावें जी,
सुसरो ईको गाली देवें,देवरियो भटकावें जी,
जेठ जेठाणी ईका,फिर-फिर चुगली खावें जी।
बहिना मारी रोती जावें …..1.
पड़ोसी ईका नजरा मारें,घर का धक्का मारें जी,
भौजाई तो बहुत चिडा़वें,बाता रा छक्का मारें जी,
पति देव तो दारू पीवें,धक्का-मुक्की मारें जी,
घर स्यू बाहर निकालें,बाड़े में सोवण जावें जी।
बहिना मारी रोती जावें……..
जीण ऑंगण में बहिना होवें,खुब मिठायाॅं बाॅंटे जी,
जद बहिना पिहरियाॅं में रेवें,खूब बधाईयाॅं बाॅंटे जी,
जद बेटी की गलती होवें,तो भी बेटा ने ही डाॅंटे जी,
जद बेटी सासरिया में जावें,कुण दुखड़ा ने बाॅंटे जी,
बहिना मारी रोती जावें ….
बहिना मेरी मेहंदी लगावें,पति रा मान बढ़ावें जी,
बहिना मेरी चौथ मनावें,पति री मांग सजावें जी,
बहिना मेरी घर सजावें,फिर क्यों ताना सहवें जी,
बहिना मेरी खाना बनावें,फिर क्यों भुखी सोवें जी,
बहिना मेरी रोती जावें …..
बहिना मेरी भोली-भाली,सबका ध्यान राखें जी,
बहिना मेरी पढ़ी लिखी छः,सबका मान राखें जी,
बहिना मेरी भजन करती,मीराॅं रा गुण राखें जी,
इतनी प्यारी बहिना मेरी,फिर क्यों ऑंसुड़ा ढ़लकाव जी,
बहिना मेरी रोती जावे …….

रचनाकार

मुकेश कुमावत ‘मंगल’

टोंक राजस्थान

प्रस्तुति