मुक्तक
इल्म से ज़िन्दगी जगमगाओ ज़रा।
इन अंधेरों में दीपक जलाओ ज़रा।
बस रहे नफरतों के शहर आजकल,
बस्तियाँ प्यार की तुम बसाओ ज़रा।
रचयिता
ममता मंजुला ✍🏻
चित्र
गूगल से उद्धृत
प्रस्तुति
इल्म से ज़िन्दगी जगमगाओ ज़रा।
इन अंधेरों में दीपक जलाओ ज़रा।
बस रहे नफरतों के शहर आजकल,
बस्तियाँ प्यार की तुम बसाओ ज़रा।
रचयिता
ममता मंजुला ✍🏻
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