नव वर्ष के पर संतोष जी का शब्द संकलन

भाव संकलन

आप सभी को नव-वर्ष 2025 की हार्दिक शुभकामनायें

“यही नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं,
है अपना यह त्यौहार नहीं,
है अपनी यह रीत नहीं,
है अपना यह व्यवहार नहीं।”

‘दिनकर’ जी की कविता की उपर्युक्त पंक्तियों से मैं सहमत तो हूं, मगर 2025 के स्वागत से मुझे कोई परहेज भी नहीं, क्योंकि मुझे गर्व है कि मैं भारतीय हूं, मैं हिन्दू हूं। मुझे दूसरों की प्रसन्नता से प्रसन्नता व दु:ख से दु:ख का अनुभव होता है।

मेरा धर्म ‘सर्व धर्म समभाव’, ‘वसुधैव कुटुम्बकं’ एवं ‘अतिथि देवो भव’ का पाठ पढ़ाता व सिखाता है।

तो क्यों न मैं भी 2025 का स्वागत करूं?

“आओ, चलें। स्वीकार करें।

नव वर्ष के आगमन का

ईश्वर को शीश नवाकर,

ईश्वर से प्रार्थना करें :

आने वाले वर्ष का

हर दिन, हर रात, हर पल हर्षित,

पुष्पित व पल्लवित हो।

जीवन में गति हो।

लय और ताल हो।

जीवन में प्रेम हो

और वो हर दिन प्रगाढ़ हो।

हरी-भरी धरती हो।

नदियों में जल का प्रवाह हो!

पौधों में पुष्प हों व पेड़ों में फल हों।

और! इनमें रस भरपूर हो!

पर्यावरण शुद्ध और स्वच्छ हो।

हर कोई अपना हो,

न कोई पराया हो ।

परिवार में प्रेम और सद्भाव हो!
खुशियां चहुं ओर हों।

रिद्धि व सिद्धि का हर घर में वास हो।

परिंदों के पर हों और लम्बी उड़ान हो!”

ऐसा एक ख्वाब है कि मेरी तरह हर किसी का अच्छा एक मित्र हो !
आप सभी का नव वर्ष मंगलमय हो। खुशियां ही खुशियां हों, सपने साकार हों।

“ईश्वर से यही कामना है,

करबद्ध प्रार्थना है :

सुख दे, दुःख दे, खुशियां व गम दे,

साथ ही उन्हें संजोने,

भुलाने और सहन करने की सामर्थ्य दे।

सुख और दुःख के किनारों से चलते हुए जीने की सीख दे।

साहस व सामर्थ्य दे।

सूर्य की ऊष्मा से हर जन ऊर्जस्वित हो

जिससे हमें कर्म पथ पर चलने की सीख व संकेत मिले।

खुद में विश्वास हो!

मन रूपी दर्पण का मान और सम्मान हो।

कर्म की प्रेरणा हो,

कुकर्म का नाश हो!

जीवन में गति हो।

लय और ताल हो।”

आइए, हम सभी अंधकार से प्रकाश और असत्य से सत्य की ओर अग्रसर हों।

संकलनकर्ता

संतोष कुमार उपाध्याय