💢कुण्डलियाँ💢
आधुनिकता व्यर्थ बढ़ी,खर्च दिखावा नोट।
भूल गये संस्कार भी,कितना किसमें खोट।।
कितना किसमें खोट,अंग शरीर दिखलावे।
न शर्म मां-बाप की,फुहड़ फैशन अपनावे।।
कह कवि नायक बंधु,न बिगड़े सामाजिकता।
सभ्यता प्रतीक बन,सद चरित्र आधुनिकता।।
अपनी कमी न मानते,कहे आपकी खोट।
इक दूजे को कोसते,बात करे सब ओट।
बात करे सब ओट,बातें मुकरते जाये।
होनि अनहोनि करे,व्यर्थहि झगड़ते पाये।।
कह कवि नायक बंधु,बकवास थौथी कथनी।
सुनना सीखा नहीं,बात बड़ी रखे अपनी।।
संघर्ष
अब संघर्षों से क्या डरना?
जरा सीख लो उस बीज से।
दफ़न किया जिसको धरती में,
जो भरे उमंगता धीज से।
चुपचाप दफ़न होकर भी,
लड़ता है लड़ाई जब तक।
धरती का सीना चीर न ले,
दम ठोक निकलता बाहर तक।
दृढ़निश्चय करता है मन में,
कितना कसमसाता होगा?
करता सामना हर संकट का,
बाहर निकल कुछ करना होगा।
अपना अस्तित्व दिखाने को,
परहित अर्पित कर देता है।
चहुं ओर पसरती रहे सुगन्ध,
बस बदले में कुछ नहीं लेता है।
नायक बाबू लाल नायक