सार-संक्षेप
संसार में पिता-पुत्र का संबंध नाजुक संबंध है। न जाने पिता की कौन-सी बात से पुत्र के कोमल मन में एक गांठ पड़ जाये जो ताउम्र न खुल पाए और जब खुले तब तक बहुत देर हो चुकी हो।
यह भी सही है कि जब एक पुत्र अपने यौवन काल में पिता की उपेक्षा करता हुआ आगे बढ़ता है, उसको लगता है कि उसकी संतान तो उसकी हर अपेक्षा पर खरा उतरेगी, लेकिन अफ़सोस जिंदगी के एक मोड़ पर आकर उसे अपनी गलती का अहसास होता है कि शायद वह ही गलत था। उसे अपने पिता के साथ वैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था जैसा उसका पुत्र उसके साथ कर रहा है। बस! पिता-पुत्र की इसी कसमसाहट पर आधारित यह प्रस्तुत उपन्यास।उपन्यास में इस पर भी बल दिया गया है कि संतान को धन, दौलत, जायदाद की जगह संस्कारों की वसीयत देनी होगी।
बतौर लेखक और पाठक मेरा यह मानना है कि जब कभी किसी पुत्र को पिता की किसी बात पर नाराजगी हो, तो वह नाराजगी एक विषाक्त गांठ में परिवर्तित न होने पाए। उससे पूर्व एक बार इस उपन्यास को जरूर पढ़ें। शायद कुछ काम आ जाए।
वर्ष 2017 में इसका पहला और 2023 में दूसरा संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। अनेक विश्वविद्यालयों में शोध कार्य हो रहा है।कई शोधार्थी शोध आलेख लिख रहे हैं।
पिता-पुत्र के आपसी संबंधों पर आधारित उपन्यास ‘ वसीयत ‘ को पाठकों का भरपूर प्यार और सम्मान मिल रहा है। एक लेखक की यही असल पूंजी होती है।

डॉ. सूरज सिंह नेगी
(लेखक)
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प्रस्तुति


