भूमिका
नव वर्ष की पूर्व संध्या पर, हम सभी यह संकल्प लें कि राष्ट्र निर्माण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता और मजबूत होगी। हमारा देश विकास, समृद्धि और एकता की ओर तेजी से अग्रसर हो, इसके लिए हम सभी अपने-अपने स्तर पर योगदान दें। चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो, स्वच्छता अभियान हो, पर्यावरण संरक्षण हो या सामाजिक समरसता का प्रयास, हर कदम हमारे भारत देश को मजबूत और सशक्त बनाए।
आइए, इस नव वर्ष की पूर्व संध्या पर एकजुट होकर उज्जवल भविष्य की ओर कदम बढ़ाएं। कविवर कृष्णदत्त शर्मा कृष्ण की कविता का आनंद लें उलझन सुलझन के सौजन्य से।
नूतन वर्ष
आ गया नूतन वर्ष अब मिल कदम आगे बढ़ाएं।
राष्ट्र के निर्माण हेतु भूल सब कटुता को जाएं।
कौन है जीवन जगत में जिसमें न उलझन भरी है।
किन्तु सुलझन की विधि ने दूर हर उलझन करी है।
राष्ट्र में भी उलझनों का है भरा भण्डार सारा।
आज तक भी उलझनों को ना मिला कोई किनारा।
किन्तु अब नव वर्ष में हम उलझनों से मुक्ति पाएं।
राष्ट्र के निर्माण हेतु भूल सब कटुता को जाएं॥१।।
जो चुने नेता गये हैं वो सभी कुर्सी के पीछे।
कर्म उनके पाए ऐसे जो मिले स्तर से नीचे।
समाज को ही बाँटने की होड़ सी सब में मची है।
सबने ही उत्तम दिखाने को यहाँ रचना रची है।
स्वार्थसिद्धि भूलकर नव वर्ष में मिल कर दिखाएं।
राष्ट्र के निर्माण हेतु भूल सब कटुता को जाएं।।२।।
लोकतन्त्र मन्दिर में अब लग रहे नारे निराले।
जो सहारा देश को दें कौन आ उन को संभाले।
धक्का मुक्की कर रहे जो राष्ट्र का अपमान है ये।
कर्णधारी देश के जो कैसी उनकी शान है ये।
नव वर्ष में अब बात अपनी सहजता से रखते पायें।
राष्ट्र के निर्माण हेतु भूल सब कटुता को जाएं॥३।।
हार हो या जीत ये तो जिन्दगी का अंग होती।
पर कभी इससे निपटना ना परस्पर जंग होती।
स्वयं रख आदर्श जीवन दूसरों को दे सकोगे।
और सबके प्यार उर का स्वयं को तुम ले सकोगे।
नव वर्ष में अहं को तज कंठ सबको लगाएं।
राष्ट्र के निर्माण हेतु भूल सब कटुता को जाएं॥४।।