“पति से पूछा गया ‘कब तक आओगे?” 

“पति से पूछा गया ‘कब तक आओगे?” 

“पति से पूछा गया ‘कब तक आओगे?”

एक साधारण सवाल, गहराई से भरा अहसास

अक्सर हम देखते हैं कि पत्नी अपने पति से यह साधारण-सा सवाल पूछती है – “घर कब तक आओगे?” पहली नज़र में यह एक सामान्य घरेलू बातचीत का हिस्सा लगता है, लेकिन वास्तव में इसके पीछे अनेक भावनात्मक, सामाजिक और मानसिक परतें छिपी होती हैं।

यह सवाल केवल समय की जानकारी नहीं मांगता, यह एक भावनात्मक पुल है — जिसमें चिंता, प्रेम, ज़िम्मेदारी और सुरक्षा की भावना समाई होती है। जब पति घर से बाहर होता है, तो पत्नी का यह पूछना उसके मन में उपजी असंख्य भावनाओं का सरलतम रूप है। यह उसकी आंतरिक प्रार्थना है कि पति के सभी कार्य सफल रहें और वह सुरक्षित लौटे।

भारतीय संस्कृति में नारी को आदि शक्ति माना गया है — वह केवल एक गृहिणी नहीं, बल्कि एक रक्षक, व्यवस्थापक और भावना की सशक्त संवाहिका होती है। वह न केवल घर के दैनिक कार्यों को व्यवस्थित करती है, बल्कि परिवार के हर सदस्य की मानसिक और भावनात्मक दशा का भी ख्याल रखती है।

पति के समय पूछने के पीछे एक व्यावहारिक सोच भी है — ताकि वह घर को उसी समय तक व्यवस्थित रख सके, भोजन से लेकर विश्राम तक की तैयारियों को सही ढंग से पूरा कर सके। यह पूछना एक सजग गृह प्रबंधक की सोच को दर्शाता है, न कि किसी संदेह या बंधन की।

और अगर हम भावनात्मक स्तर पर सोचें तो शायद यह प्रश्न उस अलिखित कमी का प्रतीक भी है जो पति के घर से बाहर जाने के बाद महसूस होती है। यह उसका तरीका है यह जताने का कि “मैं तुम्हारे लौटने की प्रतीक्षा कर रही हूँ।”

इसलिए जब अगली बार कोई पत्नी यह सवाल पूछे — “कब तक आओगे?” — तो इसे केवल समय पूछने का नहीं, बल्कि प्यार, सुरक्षा, विश्वास और परिवार की सुव्यवस्था की पुकार समझिए।

सूचना स्रोत

रुचि छाबड़ा

(उड़ेमी इंस्ट्रक्टर)

पाठ्य उन्नयन और विस्तार

चैट जीपीटी

प्रस्तुति