पौराणिक महत्ता और धार्मिक आस्था का केंद है पर्यटनस्थल हाथी भाटा

पौराणिक महत्ता और धार्मिक आस्था का केंद है पर्यटनस्थल हाथी भाटा

पर्यटन के साथ साथ पौराणिक महत्ता और धार्मिक आस्था का केंद है हाथी भाटा

राजस्थान के पर्यटक स्थलों में शुमार

राजस्थान के टोंक जिले की उनियारा तहसील के अंतर्गत प्राकृतिक सौंदर्य के बीच खेड़ा गाँव में स्थित पर्यटन स्थल ‘हाथी-भाटा’ तमाम पर्यटन स्थलों से अद्धभुत एवं अद्वितीय माना जाता है। काली- गेरुइ चट्टानों से निर्मित यह पर्यटन स्थल कई मायनों में अनुपम है। टोंक-सवाईमाधोपुर नेशनल हाइवे 116 पर स्थित होने के कारण दूर से नजर आने वाला यह पर्यटन स्थल बरबस ही देशी विदेशी पर्यटकों, यात्रियों एवं राहगीरों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।

ऐसा प्राकृतिक सौंदर्य राजस्थान ही नही अपितु पूरे भारत में अन्यत्र कहीं दिखाई नही देता। यह भारत का एक मात्र ऐसा पर्यटन स्थल है जहाँ विशालकाय एक शिलाखण्ड से निर्मित पत्थर का विशाल हाथी है जो जीवंत हाथियों को भी मात देता है।

महाभारत काल मे हुआ हाथी-भाटा का निर्माण

यूं तो हाथी-भाटा के निर्मित होने को लेकर क्षेत्र में कई तरह तरह की किवंदन्तिया एवं अलग अलग धारणाएं बनी हुई हैं। मगर प्रामाणिक तथ्यों एवं जानकारों के अनुआर हाथी भाटा का निर्माण आज से 5000 वर्ष पूर्व द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास के समय पांचों पांडवों ने मिलकर विशालकाय चट्टान को हाथी का रूप दिया था। उस समय यहां विशाल अरण्य हुआ करता था। पांडव सबसे नजर बचाते हुए अपना अज्ञातवास व्यतीत करने यहां पहुँचे थे।

यहां के स्थानीय निवासी वयोवृद्धजन व जानकार बताते हैं कि अज्ञातवास के समय पांडवों ने इस हाथी का निर्माण किया था। यह कोई साधारण हाथी नहीं वरन ऐरावत हाथी का रूप है। दूर से देखने पर मात्र एक ही सूंड दिखाई देती है मगर बारीकी से देखने एवं अध्ययन करने पर तीनों सूंड दिखाई देती हैं। हाथी के समीप पथरीली चट्टान पर गोलाकार बड़ी थालीनुमा 64 हवन कुंड बने हुए है। अज्ञातवास के समय अपनी शक्ति क्षीण हो जाने के कारण पांचों पांडवों ने माँ दुर्गा की दैवीय शक्ति प्राप्त करने के लिए योगिनियों को हवन कुंड में आहुति देकर यज्ञ किया था। वहीं पृथक से एक हवन कुंड निर्मित कर माँ दुर्गा के गण भैरवनाथ को आहुतियां दी गई। जिसके फलीभूत होकर पांडवों की खोई हुई शक्ति पुनः प्रकट हो सकी थी ।

धार्मिक आस्था का केंद्र एवं पौराणिक महत्व

हाथी-भाटा एक सुप्रसिद्ध पर्यटन क्षेत्र होने के साथ साथ ही इस क्षेत्र का धार्मिक एवं पौराणिक महत्व भी है। पांडवों के चले जाने के पश्चात इस अरण्यक में कई तपोमुनि आये और तपस्या-साधना करने लगे क्योंकि इस क्षेत्र से लगभग दो सौ मीटर दूरी पर लगभग अस्सी फिट ऊंची विशालकाय चट्टान पर शिवलिंग स्थापित है। यह शिवलिंग भी द्वापर युग के पूर्व से ही यहाँ स्थापित है।

धीरे धीरे बदलते युगकाल क्रम के साथ साथ इस क्षेत्र में वन समाप्त होते चले गए और मानव सभ्यता विकसित होती चली गई । इस क्षेत्र पर “खेड़ा गाँव” बस गया । प्राचीन काल से आज तक कोई भी मांगलिक कार्य हो या फसल बुवाई का समय हो । यहां के रहवासी हाथी-भाटा को प्रथम पूज्य गजानंद गणेश के रूप में पूजा करते है एवम शुभ मांगलिक कार्य पूर्ण करते है । कहा जाता है कि जो भी सच्चे मन से शिवलिंग एवम गणेश ( हाथी भाटा ) की पूजा करता है उसके सभी मनोरथ पूरे होते हैं।

असीमित जल राशि से भरे कुंड एवं उनका महत्व

हाथी-भाटा के समीप ही लगभग 60 फिट की दूरी पर चट्टानों के बीच दो कुंड भी है जिनकी गहराई और असीमित जलराशि की थाह आज तक कोई नही लगा सका । कहते है कि कई बार इन कुंडों की गहराई का पता लगाने के तरह तरह के प्रयास किये गए परन्तु आज तक कोई इसका पता नही लगा सका ।

श्रावण मास में दिखता है अद्भुत नजारा

हाथी-भाटा की इस अद्भुत कलाकृति को निहारने के लिए यू तो वर्ष भर हजारो लोग आते जाते रहते है मगर श्रावण मास में यहां का नजारा अद्भुत होता है । आसमान में छाई काली घटाओ के साथ प्राकृतिक सौंदर्य को धारण किये *”हाथी-भाटा”* के सौंदर्य में चार चाँद लग जाते है । संध्याकालीन सूर्य की लालिमा की तिरछी किरणों के साथ सोने के समान चमक उठता है हाथी-भाटा । जो बरबस ही पर्यटकों और राहगीरों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है ।

श्रावण मास में रिमझिम बारिश का आनंद लेने के लिए प्रतिवर्ष दूर दूर से लोग यहां पिकनिक (गोठ ) करने आते है और शुद्ध प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत आनन्द प्राप्त करके फूले नही समाते । उस समय यहां मेला सा लग जाता है ।

पर्यटन विकास की असीमित संभावनाएं

वर्तमान समय मे इस क्षेत्र पर पर्यटको का हुजूम तो वर्ष भर बना रहता है परंतु पर्यटन की असीमित सम्भावनाओ के होते हुए भी सीमित पर्यटन विकास के कारण या उपेक्षाओं के शिकार होने के कारण आने वाले लोगो को दुःखी मन से निराश होकर लौटना पड़ता है । सरकार एवम पर्यटन विभाग के द्वारा इस क्षेत्र के विकास पर पूरी तरह ध्यान दिया जाये और संशाधन विकसित कर दिए जाएं तो यह क्षेत्र राजस्थान ही नही वरन पूरे भारत मे इस तरह का एक अलग ही पर्यटन क्षेत्र साबित हो सकेगा ।

(समस्त जानकारियां एवम लेख में वर्णित सूचनाएं जनसमूह एवम जानकारों से संकलन के अनुसार हैं।)

सूचना स्रोत

सन्दीप कुमार जैन

(कवि एवं लेखक)

ककोड , टोंक (राजस्थान)

प्रस्तुति