प्रस्तावना
साहित्य की वह दिशा, जहाँ संवेदना और समर्पण का संगम होता है, वहीं से उभरती हैं कवयित्री नेहा कटारा जैसी रचनाधर्मी प्रतिभाएँ। राजस्थान के सिरोही ज़िले के पिण्डवाड़ा नगर से आने वाली यह युवा साहित्यकार न केवल शब्दों की साधक हैं, बल्कि भावनाओं की शिल्पकार भी हैं। उनकी रचनाएँ मन के सूक्ष्म भावों को सहजता और सच्चाई से उकेरती हैं। विज्ञान और साहित्य — दोनों ही धाराओं से शिक्षित होने के कारण उनके शब्दों में गहराई और दृष्टि दोनों का अद्भुत संतुलन झलकता है। उन्होंने ग़ज़ल, कविता, हाइकू, दोहा और कहानी— हर विधा में अपनी छाप छोड़ी है।
श्रीमती छाया द्वारा प्रस्तुत साहित्यिक व्यक्तित्व का परिचय
जब मैं नेहा कटारा की लेखनी से परिचित हुई, तो लगा जैसे शब्दों की धरती पर कोई नई ऋतु आई हो—संवेदनाओं से भीगी, विचारों से सजी और आत्मविश्वास से ओतप्रोत।
23 सितम्बर को जन्मी नेहा कटारा आज राजस्थान की उस उभरती हुई लेखिका का नाम हैं, जो शिक्षण कार्य के साथ-साथ साहित्य साधना में भी समान रूप से सक्रिय हैं। बी.एस.सी. और एम.ए. (हिन्दी, भूगोल) जैसी उच्च शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने यह सिद्ध किया कि ज्ञान और कला का कोई विरोध नहीं, बल्कि दोनों एक-दूसरे को पूर्ण करते हैं।
उनकी ग़ज़लें और कविताएँ राजस्थान पत्रिका, दैनिक नवज्योति, सौरभ दर्शन, शिखर विजय जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने साझा संकलनों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, जहाँ उनके शब्दों ने समाज और व्यक्ति दोनों के अंतर्मन को छुआ है।
उनकी रचनाओं में प्रकृति की कोमलता, स्त्री के संघर्ष की शक्ति, और मानवीय संबंधों की ऊष्मा एक साथ दिखाई देती है।
नेहा जी को मुक्तक मंच द्वारा “मुक्तक श्री” और नवोदित साहित्यकार मंच द्वारा “साहित्य सृजक सम्मान” से सम्मानित किया गया है। सुशील शर्मा फाउंडेशन और ट्री ग्रुप सामाजिक विकास संस्था द्वारा मिले महाराणा प्रताप सम्मान जैसे अलंकरण उनके सामाजिक और रचनात्मक योगदान की पहचान हैं। साथ ही, गीत गागर पत्रिका द्वारा “महिला युवा ग़ज़लकार” के रूप में चयन उनकी रचनात्मक ऊँचाई का प्रतीक है।
वे अध्यापन को केवल पेशा नहीं, बल्कि समाज निर्माण का माध्यम मानती हैं। बच्चों की सरलता, उनकी जिज्ञासा और जीवन के प्रति उनकी दृष्टि अक्सर नेहा जी की कविताओं में नए रूप में प्रकट होती है।
उनकी लेखनी हमें यह सिखाती है कि शब्द जब संवेदना से निकलते हैं, तो वे केवल कविता नहीं रह जाते—वे जीवन की परिभाषा बन जाते हैं। नेहा कटारा का सम्पूर्ण साहित्य इस बात का साक्ष्य है कि नई पीढ़ी की स्त्रियाँ न केवल अभिव्यक्ति की पात्र हैं, बल्कि परिवर्तन की वाहक भी हैं।
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