भूमिका
डॉक्टर विनय कुमार कैंथोला एक ऐसा व्यक्तित्व है जिसने अपने करियर का लक्ष्य किशोरावस्था में ही तय कर लिया और अपनी पूरी ज़िंदगी को उसी के अनुसार ढाल लिया। यह किसी के भी एक प्रेरणादायक उदाहरण हो सकता है। इस तरह के व्यक्ति में बचपन से ही स्पष्ट दृष्टि, दृढ़ निश्चय और अनुशासन का समावेश होता है।
जब कोई व्यक्ति कम उम्र में ही यह तय कर लेता है कि वह जीवन में क्या बनना चाहता है, तो वह अपने समय और संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करता है। वह अपनी पढ़ाई, प्रशिक्षण और अनुभव को उसी दिशा में केंद्रित करता है। उदाहरण के तौर पर, यदि किसी ने बचपन में डॉक्टर बनने का सपना देखा हो, तो वह अपने स्कूल के दिनों से ही विज्ञान विषयों में रुचि लेता है, मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करता है, और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है।
इस प्रक्रिया में चुनौतियां और कठिनाइयां भी आती हैं, लेकिन ऐसे व्यक्ति का धैर्य और समर्पण उसे आगे बढ़ने की ताकत देता है। वह अपनी असफलताओं से सीखता है और हर स्थिति में अपनी प्राथमिकताओं को स्पष्ट रखता है।
इस तरह का जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर कोई व्यक्ति बचपन में ही अपने लक्ष्य तय कर ले और पूरी ईमानदारी व मेहनत से उस दिशा में कार्य करे, तो सफलता निश्चित है। ऐसा व्यक्तित्व दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।
परिचय
साथियो! अब ग्राम पाठशाला पर केस स्टडी भी और इसका श्रेय जाता है हमारे आज के मेहमान श्री (डॉ.) विनय कुमार कैंथोला जी को।
ग्राम पाठशाला का विचार देश भर के शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं को प्रेरित और प्रभावित कर रहा है। इसीलिए यह विचार शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं का पसंदीदा विषय बना हुआ है। इसी क्रम में हरियाणा के सोनीपत जिले की ऋषिवुड यूनिवर्सिटी में डॉ. विनय कुमार कैंथोला जी ने ऋषिवुड यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी इन्टरनेशनल कॉन्फ्रेंस 2025 में प्रतिभाग के दौरान ग्राम पाठशाला के मिशन के विषय पर एक केस स्टडी प्रस्तुत की। डॉ. विनय कैंथोला के प्रेजेंटेशन ने समूचे सभागार को प्रभावित किया और प्रेजेंटेशन समाप्त होने के बाद वहाँ पर ग्राम पाठशाला की मुहिम ही चर्चा का विषय बन गई।
डॉ. कैंथोला जी ने पुस्तकालय उपयोगकर्ताओं के लिए कई कार्यशालाएं और प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए हैं और नि:शुल्क ऑनलाइन शिक्षण उपकरणों के उपयोग को बढ़ावा दिया है।
साथ ही उन्होंने निजी संस्थानों में एक उत्कृष्ट पुस्तकालय प्रणाली विकसित की है और उनके मार्गदर्शन में कई प्रतिष्ठित परियोजनाएं पूरी हुई हैं। उनका मुख्य ध्यान उपयोगकर्ता संतुष्टि, आईसीटी का उपयोग, और पुस्तकालय सेवाओं के सतत विकास पर केंद्रित है। तो आइए आज मुलाकात करते हैं इस प्रेरक व्यक्तित्व से।
अभियान के लोगों के साथ
बातचीत
प्रश्न १. सर, आपने कब और कैसे यह तय किया कि आपको जो करना है पुस्तकालयों से संबंधित हो?
उत्तर – “वर्ष 1997 में, जब मैं एक पुस्तकालय में कार्यरत था, तो मुझे पहली बार यह अहसास हुआ कि पुस्तकालय के क्षेत्र में कार्य करना मेरे लिए सबसे उपयुक्त होगा। इसका मुख्य कारण यह था कि मुझे बचपन से ही पुस्तकें पढ़ने का गहरा शौक था और पुस्तकालय में काम करते हुए मुझे अपनी रुचि को एक उद्देश्यपूर्ण दिशा देने का अवसर मिला।
इस प्रेरणा के चलते मैंने पुस्तकालय विज्ञान में औपचारिक शिक्षा अर्जित करने का निश्चय किया। सबसे पहले मैंने बैचलर ऑफ लाइब्रेरी साइंस (बी.लिब.) की डिग्री प्राप्त की, जो पुस्तकालय विज्ञान की मूलभूत समझ प्रदान करती है। इसके बाद मैंने मास्टर ऑफ लाइब्रेरी साइंस (एम.लिब.) किया, जिसमें मैंने पुस्तकालय प्रबंधन, सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना सेवाओं के क्षेत्र में गहन ज्ञान अर्जित किया।
अपनी योग्यता को और अधिक सशक्त बनाने के लिए मैंने यू.जी.सी. नेट (पुस्तकालय विज्ञान) की परीक्षा उत्तीर्ण की, जो उच्च शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मानदंड है। इसके बाद, मैंने अपनी रुचि और ज्ञान को और गहराई देने के लिए पी-एच.डी. (पुस्तकालय विज्ञान) में शोध कार्य किया। पुस्तकालय में कार्यिकी के दौरान मुझको मेरे अभिभावकों के अतिरिक्त मेरे लाइब्रेरी प्रोफेसर इंचार्ज प्रोफेसर नवीन चंद्रा और मेरे भाइयों तथा साथियों ने भी पुस्तकालय विज्ञान में अपनी शिक्षा को उच्चीकृत करने के लिए उत्साहित और प्रोत्साहित किया।
इससे पूर्व भी ग्राम पाठशाला के संदर्भ में मैं जागरूकता बारहवें इंटरनेशनल लाइब्रेरी इंफॉर्मेशन प्रोफेशनल सम्मिट (I-LIPS) में प्रसरित कर चुका हूं, जिसका विषय था ‘पुस्तकालय विज्ञान में नवीन तकनीकें: चुनौतियां और अवसर’। इंटरनेशनल लाइब्रेरी इंफॉर्मेशन प्रोफेशनल सम्मिट (I-LIPS) 2024 का आयोजन 29 नवंबर से 01 दिसंबर 2024 तक ग्रेटर नोएडा में गलगोटिया यूनिवर्सिटी, सोसाइटी फॉर लाइब्रेरी प्रोफेशनल्स और बिहार लाइब्रेरी एसोसिएशन द्वारा किया जा रहा था।
इस पूरी शैक्षणिक और व्यावसायिक यात्रा ने न केवल मुझे पुस्तकालय विज्ञान के क्षेत्र में विशेषज्ञता प्रदान की, बल्कि मेरी रुचि को मेरे करियर में परिवर्तित करने का भी अवसर दिया। आज, मुझे गर्व है कि मैंने अपने शौक और जुनून को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया।”
प्रश्न २. आपको ग्राम पाठशाला मिशन के संदर्भ में कब ज्ञात हुआ और आप इस मिशन से कब जुड़े?
उत्तर – “5 अगस्त 2023 को, जब मैं ‘फेस्टिवल ऑफ लाइब्रेरीज’ कार्यक्रम में शामिल हुआ, जिसे भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित किया गया था, वहाँ पर मैंने ‘ग्राम पाठशाला’ के स्टॉल को देखा। इस मिशन का उद्देश्य और उनकी कार्यशैली ने मुझे गहराई से प्रभावित किया। मैंने इस स्टॉल पर काफी समय बिताया और मिशन के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की।
मुझे यह जानकर बेहद खुशी हुई कि यह मिशन ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और ज्ञान के प्रसार के लिए समर्पित है। वहां उपस्थित स्वयंसेवकों से बातचीत के दौरान, मैंने महसूस किया कि यह एक ऐसा प्रयास है जिससे मैं भी जुड़कर समाज के लिए कुछ सकारात्मक योगदान दे सकता हूँ। मैंने उनसे आग्रह किया कि मुझे भी इस मिशन से जोड़ा जाए ताकि मैं उनकी इस प्रेरणादायक यात्रा का हिस्सा बन सकूं।
स्वयंसेवकों ने मेरी रुचि को देखकर मुझसे एक फॉर्म भरवाया और बाद में मुझे ‘ग्राम पाठशाला’ के व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ दिया। यह मेरे लिए एक नई शुरुआत थी, और मैं इस मिशन के साथ जुड़कर समाज में शिक्षा का उजाला फैलाने के लिए तत्पर हूँ।”
प्रश्न ३. आप कब से स्वयं को ग्राम पाठशाला का स्वयंसेवक मानते हैं?
उत्तर – “जब मैं मिशन के स्वयंसेवकों से पहली बार प्रदर्शनी में मिला, तभी से मेरे मन में इस मिशन के प्रति गहरी श्रद्धा और समर्पण का भाव उत्पन्न हो गया। उसी समय मैंने स्वयं को इस मिशन का एक अभिन्न हिस्सा मान लिया और यह निश्चय कर लिया कि मैं भी ग्राम पाठशाला का एक समर्पित स्वयंसेवक बनूंगा।
मुझे बचपन से ही पुस्तकालय और ज्ञान के महत्व का गहरा अनुभव था। मैं जानता था कि पुस्तकालय न केवल शिक्षा का केंद्र होते हैं, बल्कि वे समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का माध्यम भी बन सकते हैं। इस सोच ने मुझे प्रेरित किया कि मैं बिना किसी विलंब के इस मिशन से जुड़ जाऊं और इसके उद्देश्यों को सफल बनाने में अपना योगदान दूं।
इस मिशन के माध्यम से मुझे ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और जागरूकता फैलाने का एक अद्भुत अवसर मिला। मुझे यह विश्वास था कि पुस्तकालय के माध्यम से न केवल बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिलेगा, बल्कि वयस्कों और समाज के हर वर्ग को भी सशक्त बनाया जा सकेगा। इस उद्देश्य ने मेरे अंदर एक नई ऊर्जा और उत्साह भर दिया, और मैं पूरी लगन और निष्ठा के साथ इस कार्य में जुट गया।”
प्रश्न ४. क्या आपको ग्राम पाठशाला के प्रबंधतंत्र द्वारा कोई एकल दायित्व भी सौंपा हुआ है?
उत्तर – “मुझे कोई औपचारिक दायित्व नहीं सौंपा गया है, लेकिन प्रथम दिन से ही इस मिशन से जुड़ने के साथ मैंने इसे अपना व्यक्तिगत दायित्व मान लिया है। मेरा यह संकल्प है कि लोगों में जागरूकता पैदा करनी है और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए कार्य करना है। इस मिशन के अंतर्गत, जो मिशन का ध्येय वहीं मेरा भी कि 15 अगस्त 2027 तक भारत को ‘पुस्तकालयों का देश’ बनाया जाए।
इस लक्ष्य को लेकर जब भी मुझे अवसर मिलता है, मैं लोगों को इसके महत्व और लाभ के बारे में जागरूक करता हूं। मैंने समाज के कुछ प्रमुख व्यक्तियों से भी इस विषय पर संवाद किया है, विशेष रूप से उन लोगों से जिनकी भागीदारी ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है। इन व्यक्तियों की भूमिका इस मिशन में अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि वे न केवल ग्रामीण समुदायों के साथ निकटता से जुड़े हुए हैं, बल्कि वे इस लक्ष्य को साकार करने में भी सक्रिय योगदान दे रहे हैं।
मैंने नीमराना, जहां मैं वर्तमान में एन.आई.आई.टी. यूनिवर्सिटी में कार्यरत हूं, के ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रिय कुछ प्रमुख व्यक्तियों से भी इस विषय में चर्चा की। मैंने देखा कि इन व्यक्तियों ने इस मिशन को गंभीरता से लिया है और पुस्तकालयों के निर्माण और उपयोग को प्रोत्साहित करने में सराहनीय कार्य कर रहे हैं।
मेरा प्रयास है कि इन ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक से अधिक पुस्तकालय स्थापित किए जाएं, ताकि हर वर्ग और उम्र के लोग ज्ञान की उपलब्धता का लाभ उठा सकें। साथ ही, मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूं कि इस मिशन में शामिल प्रत्येक व्यक्ति को आवश्यक संसाधन और मार्गदर्शन मिले।
मुझे विश्वास है कि यदि हम सभी मिलकर इस दिशा में कार्य करें, तो हमारा सपना, भारत को पुस्तकालयों का देश बनाना, निश्चित रूप से साकार होगा।”
प्रश्न ५. पुस्तकालयों को लेकर और ग्राम पाठशाला अभियान को लेकर क्या आपने कोई स्वप्न संजोया हुआ है?
उत्तर – “पुस्तकालयों का महत्व किसी भी समाज के लिए उतना ही आवश्यक है जितना एक नींव का मजबूत होना एक इमारत के लिए। मेरा सपना है कि भारत में पुस्तकालयों के महत्व को समाज न केवल पहचाने, बल्कि इसे अपनी सांस्कृतिक और बौद्धिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा बनाए। पुस्तकालय केवल किताबों का भंडार नहीं होते, यह समाज के विकास, ज्ञान के प्रसार और विचारों के आदान-प्रदान के सशक्त स्तम्भ हैं। इनके बिना किसी भी समाज की प्रगति की कल्पना अधूरी है।
इतिहास साक्षी है कि वही देश, वर्ग, और समाज प्रगति की ऊंचाइयों को छू सके हैं, जिन्होंने पुस्तकालयों की स्थापना को प्राथमिकता दी और उनकी विचारधारा को अपनाया। चाहे वह प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय हो, अलेक्जेंड्रिया का पुस्तकालय हो, या आधुनिक युग के डिजिटल पुस्तकालय—सभी ने मानव सभ्यता को नई दिशा दी है।
आज आवश्यकता है कि हम सरकार के साथ-साथ अपने स्तर पर भी पुस्तकालयों को प्रोत्साहित करने का प्रयास करें। यह केवल सरकार का दायित्व नहीं है; हर नागरिक की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह ज्ञान के इस भंडार को संरक्षित और संवर्धित करे। पुस्तकालय न केवल शिक्षा का माध्यम हैं, बल्कि यह नैतिकता, संस्कृति और सामाजिक मूल्यों को भी सुदृढ़ करते हैं।
आइए, हम सभी यह प्रण लें कि पुस्तकालयों को केवल भौतिक संरचना तक सीमित न रखकर, उन्हें विचारों और ज्ञान के जीवंत केंद्र के रूप में स्थापित करेंगे। यही सच्चा विकास है और यही हमारे समाज की स्थिरता और उज्ज्वल भविष्य की कुंजी है।”
सूचना स्रोत
डॉक्टर विनय कुमार कंडोला और
चैट जीपीटी