कविता

जीवन बाध्यता

सफ़र तो करना पड़ेगा।

स्वयं को गढ़ना पड़ेगा।।

कंटकों से राह निर्मित,

पद मगर प्रत्याहरित ना।

अनवरत पदचाप मेरी,

दृष्टि मेरी संकुचित ना ।।

तीक्ष्ण पाषाणों में मंज़िल, यू

पाँव तो धरना पड़ेगा ।

सफ़र तो करना पड़ेगा।

स्वयं को गढ़ना पड़ेगा।।

 

नग्न पदचिह्नों को देखो,

उष्ण मिट्टी के हृदय पर ।

भग्न भावों को लिए मैं,

सतत् हूँ अपने सफ़र पर ।।

चित्रपट है जो मृदा पर,

रक्त से भरना पड़ेगा ।

सफ़र तो करना पड़ेगा।

स्वयं को गढ़ना पड़ेगा।।

रचनाकार

@…dAyA shArmA

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