💥राजस्थानी कविता💥
भरी दुपहरी ताॅंवडो़,अर बूळ्या री छाया।
ठंडों पाणी मटकी रो,पीता तरपत काया।।
भरी दुपहरी तूण चाली,बैठ्या गाॅंव री ढाणी।
माटी री मटकी रो अमृत, ठंडो-ठंडो पाणी।।
धौरां वाळो देश आपणों,केर-सांगरी साग।
तातो-तातो चले बायरो,मरुधर बरसी आग।।
🌺मायड़ भाषा रा दोहा🌺
धौरां धरती आपणी,खेजड़ली री छाॅंव।
ढाणी-ढाणी टापरा, छोटा-छोटा गाॅंव।।।।
दोफेरी का ताॅंवडा़,मरुधर बरसे आग।
मृग तसाया ताकता,मृगतृष्णा ने भाग।।।।
पाणी सूख्या पौखरा,मृगा तसाया जाय।
दूर-दूर तक दौड़ता,दम तोड़ता हाय।।।।
‘नायक’ बाबूलाल नायक