रिश्तों को जोड़ने वाला पावन पर्व है रक्षाबंधन
मासिक पत्र

रिश्तों को जोड़ने वाला पावन पर्व है रक्षाबंधन

रक्षाबंधन

रिश्तों को जोड़ने वाला पावन पर्व

इतिहास के पन्नों से

रक्षाबंधन केवल आज का त्योहार नहीं है, बल्कि सदियों से भाई–बहन के अटूट प्रेम और सुरक्षा के वचन का प्रतीक रहा है।

इतिहास में इसके कई प्रेरक उदाहरण मिलते हैं –

द्रौपदी और श्रीकृष्ण 

द्रौपदी ने कृष्ण के हाथ पर कपड़े का टुकड़ा बांधकर रक्षा का वचन लिया, और कृष्ण ने कठिन समय में उसकी लाज बचाई।

कर्णावती और हुमायूँ

मेवाड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर अपनी रक्षा की गुहार की, और हुमायूँ ने वचन निभाते हुए उसकी सुरक्षा की।

एक प्रेरक सच्ची कहानी

राजस्थान के एक छोटे से कस्बे की यह कहानी अखबार में प्रकाशित हुई थी।

बहन – लगभग 90 वर्ष की

भाई – लगभग 95 वर्ष के

फिर भी, भाई हर साल रक्षाबंधन पर अपनी बहन के ससुराल जाता था।

बहन भी पूरे रीति–रिवाज और प्रेम से उसकी कलाई पर राखी बांधती थी।

यह परंपरा उम्र, दूरी और समय की हर बाधा को पार करती रही।

कहानी छोटी है, लेकिन संदेश बहुत बड़ा –

“रिश्ते निभाने के लिए समय नहीं, बस नीयत चाहिए।”

आज की स्थिति और बदलते त्योहार

इंटरनेट और भागदौड़ भरी जिंदगी ने त्योहारों की गहराई और अवधि दोनों कम कर दी है।

जहाँ पहले रक्षाबंधन का उत्सव कई दिनों तक चलता था, आज यह बस 5-10 मिनट का औपचारिकता बनकर रह गया है।

शादी के बाद कई भाई–बहन तो सालों तक एक-दूसरे से राखी भी नहीं बंधवाते।

ऐसा ही हाल होली, दीपावली और अन्य त्योहारों का भी है।

संदेश

मैं छोटा हूँ, लेकिन इस रक्षाबंधन पर एक बड़ी बात कहना चाहता हूँ–

इस बार राखी ऐसे मनाएँ जैसे हमारे पूर्वज मनाते थे।

बहन के घर जाएँ

पूरे रीति–रिवाज से राखी बंधवाएँ

समय दें, केवल फोटो और सोशल मीडिया तक न सीमित रहें

क्योंकि…

“त्योहार तभी सार्थक हैं जब वे दिलों को जोड़ें, न कि केवल तारीखें भर बदलें।”

सृजक

✍️ गिर्राज गुर्जर

कक्षा – 11, बनेठा, टोंक

पाठ्य विस्तार

प्रस्तुति