सार छंद

सार छंद

सार छंद

आतंकवाद का धर्म नहीं, हमने है ये माना,

पहलगाम के हमले को है, सबने ही पहचाना।

कट्टरवाद है इसमें हावी, जिसने ले ली जानें

हाथ नहीं धर्मों का इसमें, किसको देवें ताने।

मानवता का ह्रास हुआ अब, मुश्किल आना-जाना

आतंकवाद का धर्म नहीं, हमने है ये माना।

 

पाकिस्तान में शह मिली पर, भारत कैसे आये?

फौज खड़ी चप्पे-चप्पे पर, ध्यान नहीं क्यों लाये।

देख रहा था ज़र्रा ज़र्रा, मौसम का अफसाना

आतंकवाद का धर्म नहीं, हमने है ये माना।

 

कुछ लोग यहाँ पर रहकर भी, गीत पाक के गाते

रुपयों के बदले खुफिया की, बातें सब बतलाते।

ढूंढ निकालो उन लोगों को, जो दे रहे ठिकाना

आतंकवाद का धर्म नहीं, हमने है ये माना।

 

फांसी दे दो उन लोगों को, खून खराबा करते

हम वतन से गद्दारी कर जो, झोली अपनी भरते।

मुश्किल इन लोगों के कारण, पकड़ उन्हें है पाना

आतंकवाद का धर्म नहीं, हमने है ये माना।

रचनाकार

श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’

मालपुरा, टोंक

राजस्थान

प्रस्तुति