सारगर्भित बातें
सपनों को पूरा करने का जुनून एक होता है भारी।
बड़ी चुनौती कठिनाई भी सदा-सदा इससे है हारी।
कुछ लोगों को हमने देखा सदा चुनौती को ललकारा।
संसाधन की भले कमी हो लेकिन जोश कभी ना हारा।
आत्मविश्वास यदि बना हुआ है प्रयासों को मिली सफलता।
अपने प्रयासों से बच्चे हरा दिखाते सदा विफलता।
अपनी मेहनत और लगन से मानस कुछ भी कर सकता है।
छोटी सी सीढ़ी के बल पर उच्च शिखर पर चढ़ सकता है।
सीमा हो कितनी ही दुस्तर मंजिल निश्चित पा सकता है।
बीहड़ पथ हो भले ही दूभर विचलित नहिं वो हो सकता है।
पढ़ने और गुनने में अन्तर सदा सदा से होता आया।
शिक्षित भी अशिक्षित गुण आगे नमन सदा ही करता पाया।
शिक्षा भी है बहुत जरूरी मगर जरूरी उसको गुनना।
वक्ता बनने से पहले तो महा जरूरी सबको सुनना।
बुद्धि और आत्मचिंतन का नहीं कोई अक्षर से नाता।
साक्षर स्वयं निरक्षर आगे अपने नयन झुकाता पाता।
साक्षर बनकर नैतिकता से तोड़ दिया गर अपना नाता।
आत्मचिंतन व संवेदना को समझ नहीं जीवन में पाता।
सदा आंकता जो दूजों को नहिं स्वयं में कभी झाँकता।
साक्षर वो कितना ही होवे जीवन में वो सदा हांफता।
मात-पिता को जो भी मानव अपने ऊपर बोझ समझता।
बार-बार ही बात-बात पर मात-पिता से सदा उलझता।
फिर तो उसकी सभी डिग्रियां मात्र एक कागज का टुकड़ा।
उससे अच्छा निरक्षर जो समझे मात- पिता का दुखड़ा।
पढ्ना तो आसान बहुत है बड़ा कठिन पर उसे समझना।
बिन समझे ही अच्छा लगता उसको जग में सदा उलझना।
पढ़ो अगर गुनना भी सीखो ये जीवन को सीख अटल है।
वर्ना तो बुद्धि ही उसकी होती केवल श्याम पटल है।
पढ़ने का तो लाभ तभी है पढ़ा हुआ जीवन में ढालो।
पढ़ने का अभिमान अगर है मुक्ति उससे जल्दी पा लो।
साक्षर भी कोई ज्ञानी होवे ये नहीं होता कभी जरूरी।
अनपढ़ में भी ज्ञान गगरिया भरी हुई मिलती है पूरी।
रचयिता
कृष्णदत्त शर्मा ‘कृष्ण’
08-05-25
प्रस्तुति