समाज की विभूतियों को जानें

समाज की विभूतियों को जानें

संत ब्रह्मानंद जी

एक संत, एक समाज सुधारक, एक शिक्षाविद्

संत ब्रह्मानंद जी का जन्म 1912 में पंजाब राज्य के शहीद भगत सिंह नगर जिले की बलाचौर तहसील के चूहड़पुर गांव में हुआ था। उनका असली नाम गिरधारी सिंह था। वह गुर्जर जाति के कटारिया गोत्र से थे और छह भाइयों में से एक थे।

स्वतंत्रता के बाद का जीवन

1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय उन्होंने उत्तराखंड के रामनगर (जिला नैनीताल) में ज़मीन खरीदकर वहीं बसना शुरू किया। 1952 में ज़मींदारी प्रथा समाप्त होने के बाद वे न्याय पंचायत के सरपंच भी बने, जिसमें 272 गांव शामिल थे।

संत जीवन की ओर यात्रा

1962 में उन्होंने स्वामी लाल दास जी भूरिवाले से प्रेरणा लेकर संत जीवन को अपनाया और गिरधारी सिंह से संत ब्रह्मानंद बन गए। उनका ध्यान केवल भक्ति में नहीं, बल्कि समाज के विकास में भी था।

समाज सेवा और शिक्षा क्षेत्र में योगदान

1975 में स्वामी लाल दास जी के निधन के बाद वे संप्रदाय की गद्दी पर विराजमान हुए। उन्होंने पंजाब के कांडी क्षेत्र (जो हिमाचल सीमा के पास का अर्ध-पहाड़ी इलाका है) को अपनी कर्मभूमि चुना। यहाँ न तो उपजाऊ ज़मीन थी और न ही पानी की व्यवस्था, लेकिन उन्होंने इसे विकास की राह दिखाई।

वे मानते थे कि आस्था के मंदिरों से ज़्यादा ज़रूरी है ‘ज्ञान के मंदिर’ यानी स्कूल और कॉलेज। इस सोच को साकार करने के लिए 18 जून 1984 को उन्होंने ‘महाराज भूरिवाले गरीब दास्सी एजुकेशन ट्रस्ट’ की स्थापना की।

शिक्षण संस्थानों की स्थापना

* 1985 में पंजाब के पोजेवाल गांव में एक स्कूल शुरू किया गया, जिसे बाद में सरकार को सौंप दिया गया।

* अगस्त 1986 में पंजाब के मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला ने इस कॉलेज का उद्घाटन किया।

* 1988 में, कांग्रेस नेता राजेश पायलट के सहयोग से ट्रस्ट की 30 एकड़ भूमि पर नवोदय विद्यालय की स्थापना हुई।

ट्रस्ट की वर्तमान सेवाएं

आज यह ट्रस्ट निम्नलिखित संस्थान चला रहा है:

* 2 CBSE स्कूल

* 5 कॉलेजिएट स्कूल

* 5 डिग्री कॉलेज

* 1 B.Ed कॉलेज

* 1 नर्सिंग कॉलेज

* 1 अस्पताल

* 100 एकड़ में फैला गौ-फार्म

* चंडीगढ़ PGI में रोजाना लंगर सेवा

उनका दर्शन

संत ब्रह्मानंद जी ने ‘ गौ, गरीब और कन्या’ को अपने सेवा मिशन का मूल मंत्र माना और इन्हीं के कल्याण के लिए आजीवन काम किया।

अंतिम समय और विरासत

संत ब्रह्मानंद जी का निधन 1 मई 2002 को हुआ। उनके बाद चेतनानंद जी महाराज को गद्दी सौंपी गई। संत जी का प्रभाव इतना व्यापक था कि पंजाब के मुख्यमंत्री और मंत्रीगण भी उनसे मार्गदर्शन लेने आया करते थे।

सूचना स्रोत

श्री सचिन राठी और श्री भगवानदास मंजीत।

पाठ्य विस्तार

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