समावेशी नीतियों की ओर एक महत्वपूर्ण कदम

समावेशी नीतियों की ओर एक महत्वपूर्ण कदम

समावेशी नीतियों की ओर एक महत्वपूर्ण कदम

मुख्य सचिव की सोच में महिलाओं की भागीदारी

कोई भी नीति जब समाज के सभी वर्गों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है, तो उसका असर न केवल गहरा होता है, बल्कि टिकाऊ भी बनता है। हाल ही में उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्य सचिव द्वारा व्यक्त की गई यह सोच कि शहरों के विकास से पहले महिलाओं के सुझावों को प्राथमिकता दी जाएगी, एक दूरदर्शी और संवेदनशील प्रशासनिक दृष्टिकोण का प्रमाण है।

इस सोच के मूल में यह समझ छिपी है कि कोई भी समुदाय, विशेषकर महिलाएं, जिनका दैनिक जीवन शहरी ढांचे और सेवाओं पर सीधा निर्भर करता है, उनके अनुभवों और सुझावों को नजरअंदाज करके कोई भी योजना पूर्ण नहीं हो सकती।

मुख्य सचिव का यह निर्णय कि “विकास की योजनाएं महिलाओं के सुझावों के आधार पर तैयार होंगी”, यह दर्शाता है कि शासन अब केवल आंकड़ों और मास्टर प्लान पर आधारित नहीं रहेगा, बल्कि जमीनी हकीकत और मानवीय अनुभवों को प्राथमिकता देगा। इससे शहरी ढांचे में सुरक्षा, सुविधा, स्वच्छता, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों में महिलाओं की दृष्टि से उल्लेखनीय सुधार हो सकते हैं।

महिलाओं के सुझावों का महत्व

महिलाएं शहरों की अदृश्य योजनाकार रही हैं — वे रोज़ सड़कें पार करती हैं, बच्चों को स्कूल छोड़ती हैं, अस्पताल जाती हैं, बाज़ार जाती हैं, काम पर जाती हैं। उन्हें सार्वजनिक परिवहन की कमी, स्ट्रीट लाइट की अनुपस्थिति, असुरक्षित गलियां और सार्वजनिक शौचालयों की दुर्दशा का सबसे अधिक सामना करना पड़ता है। जब ऐसी महिलाएं विकास की रूपरेखा तैयार करने में अपनी भूमिका निभाएंगी, तो निश्चित ही योजनाएं अधिक व्यावहारिक और प्रभावशाली होंगी।

नीतियों में समुदाय की भागीदारी

मुख्य सचिव की यह पहल न केवल महिलाओं तक सीमित रह सकती है, बल्कि इसे एक व्यापक ढांचे में बदलकर समाज के अन्य वंचित वर्गों — बुजुर्गों, दिव्यांगों, मजदूरों और बच्चों — के सुझावों को भी शामिल किया जा सकता है। इससे हर नीति और योजना ‘जन की, जन के लिए, और जन से’ बन सकेगी।

यह सोच क्यों महत्वपूर्ण है?

सामाजिक न्याय की दृष्टि से यह पहल समावेशिता को बढ़ावा देती है।

प्रभावशीलता की दृष्टि से योजनाएं धरातल पर अधिक सफल होती हैं।

विश्वास निर्माण की दृष्टि से जनता और शासन के बीच दूरी कम होती है।

मुख्य सचिव की यह सोच एक प्रशासनिक परिवर्तन का संकेत देती है, जहां नीतियां अब बंद कमरों में नहीं, बल्कि समुदायों के बीच बनेंगी।

निष्कर्ष

यदि किसी भी नीति या योजना का उद्देश्य समाज का समग्र विकास है, तो उस समाज के हर वर्ग की आवाज़ को सुनना अनिवार्य है। मुख्य सचिव द्वारा महिलाओं की भागीदारी को प्राथमिकता देने की यह पहल केवल शहरी विकास नहीं, बल्कि सकारात्मक सामाजिक बदलाव की नींव है।

संदर्भ

दैनिक अमर उजाला

आइडिया

सोनिया सिंह ‘जागृति’

(सम्पादिका, उलझन सुलझन मासिक, लेडीज विंग, सहारनपुर)

प्रस्तुति