भूमिका
पेशे के रूप में विद्यालय खोलने और पीढ़ियां तैयार करने के लिए विद्यालय खोलने में अंतर विद्यालयों की गतिविधियों ही से स्पष्ट हो जाता है। होली चाइल्ड पब्लिक इंटर कॉलेज की कार्यिकी ही इस विद्यालय के प्रबंध तंत्र को बिल्कुल अलग खड़ा कर देती है।
गतिविधि का विवरण
आज दिनांक 15 जनवरी 2025, दिन बुधवार को होली चाइल्ड पब्लिक इण्टर कॉलेज, जड़ौदा, मुजफ्फरनगर के सभागार में बच्चों को संस्कारित करने व संस्कारवार बनाने के लिए लिए एक संस्कारशाला का आयोजन किया गया। संस्कारशाला का आयोजन हरिद्वार से आये स्वामी तेजस मुनि, प्रदीप त्यागी, रजनी शर्मा, योगाचार्य सतकुमार, आजाद सिंह व प्रधानाचार्य प्रवेन्द्र दहिया द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया।
संस्कारशाला के मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता स्वामी तेजस मुनि ने विद्यार्थियों को संस्कारशाला के विषय में बताते हुए समझाया कि “संस्कारशाला दो शब्दों संस्कार+शाला से बना है, मन पर आदतों की छाप डालना ही संस्कार है। संस्कार दो प्रकार के होते है कुसंस्कार एवं सुसंस्कार। संस्कार का सम्बन्ध मन से है और मन भी दो प्रकार के होते है सु-मन (स्वस्थ मन) व कु-मन (अस्वस्थ मन) दोनों ही मन संस्कार बनाते है एक अच्छे संस्कार बनाता है और दूसरा बुरे संस्कार।
स्वस्थ मन बनाने के लिए अच्छे विचारों को लाना पडेगा। मन हमारे शरीर में रहता है और इस शरीर का स्वामी ईश्वर है, क्योंकि परमात्मा ने ही शरीर का निर्माण किया है। शरीर का राजा आत्मा है। आत्मा का सेवक मन है। आत्मा जो भी कार्य बताता है उसे ही मन करता है। मन का सम्बन्ध पांच इन्द्रियों से है। मन इन्हीं इन्द्रियों द्वारा आत्मा के बताये हुए कार्यों को कराता है। मन जड़ है तथा आत्म चेतन। अब बात संस्कार की आती है जब आत्मा ने इच्छा बनती है तो आत्मा उस इच्छापूर्ति के लिए मन को आदेश देती है और मन अपने अधीन इन्द्रियों के पास जाता है और इन्द्रियों से वह इच्छा पूर्ति कराता है जब एक प्रकार की इच्छा बार-बार पूरी करायी जाती है तो उसकी छाप मन पर लग जाती है वही छाप संस्कार कहलाती है। इससे सिद्ध होता है कि हमारी आदतें और इच्छाएं ही संस्कार बनाती हैं। इसलिए हमें अपनी आदतें और इच्छाओं को अच्छी रखना है। अधिक बोलना, गलत बात अपनाना, चुगली करना, गाली देना, झूठ बोलना, ईर्ष्या द्वेष करना आदि ये गलत आदतें हैं, ये आदमी को कुसंस्कारी बनाती हैं। अतः हमें इन आदतों से बचना चाहिए। हमेशा अपने मन में अच्छी-अच्छी बातें सोचने व करने से हम संस्कारी बनते जाते हैं। अगर किसी कारणवश कोई कुसंस्कार हममें पड गया है तो उसे कैसे दूर करें। सर्वप्रथम तो हमें यह स्वीकार करना होगा कि यह कुसंस्कार मेरे अन्दर है जब तक हम किसी बात को स्वीकार नहीं करते तब तक उसमें सुधार नहीं किया जा सकता, फिर उस गलत आदत को छोडने का संकल्प लें जिसके कारण हमारे अन्दर कुसंस्कार आया है। इसमें हम अपने माता-पिता, सगे संबंधियों व अपने गुरुजनों का सहयोग लेना अति आवश्यक है जो तुम्हें कदम-कदम पर आपकी बुरी आदतों से सावधान करते जायेंगे और एक दिन वह कुसंस्कार आपके अन्दर से समाप्त हो जायेगा।”
प्रधानाचार्य श्री प्रवेंद्र दहिया जी ने अपने संबोधन में कहा कि
“हमको हमेशा अपना अवलोकन करते रहना चाहिए और अपनी आदतों पर भी ध्यान देते रहना चाहिए। अगर कोई गलत आदत लगे तो उसे तुरन्त ही छोड देना चाहिए। यदि आपने उपरोक्त में से एक सूत्र भी समझ लिया तो स्वामी जी का यहां आना सार्थक हो जायेगा।”
कार्यक्रम उपरांत प्रधानाचार्य महोदय ने सभी आगंतुओं का और कार्यक्रम के सफल आयोजन में सहयोग करने वालों का हृदय से आभार व्यक्त किया।
सूचना स्रोत
श्री प्रवेंद्र दहिया
प्रस्तुति