मुस्करायें, आनंद लें और जरूरत समझें तो शिक्षा भी ले सकते हैं!
रात सपने में अमेरिकन वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन आ धमके। हमने सोचा—हम तो अंग्रेजी साहित्य के व्यक्ति हैं, विज्ञान से हमारा क्या लेना-देना! एडिसन का हमारे सपने में क्या काम?
खैर, अमेरिकन था, विश्वविख्यात वैज्ञानिक था। हम स्वागत करने के लिए मुस्कुराए, परंतु वह मुँह बनाए खड़ा रहा। मैंने पूछा—
“हे उन्नीसवीं सदी के महामानव! आप निराश क्यों हैं?”
बोला—”मन में भारी पीड़ा है।”
मैं बोला—”इतनी दूर से आकर मुझे ही क्यों पीड़ा बता रहे हो?”
बोला—”साहब! एक सनकी व्यक्ति की पीड़ा सनकी व्यक्ति ही समझ सकता है।”
मैंने सोचा—हमारा भी क्या दुर्भाग्य है! यह उन्नीसवीं शताब्दी का अमेरिकावासी भी हमें सनकी मान बैठा है। भला एडिसन की क्या गलती, हमारे आसपास के सभी लोग हमें सनकी ही मानते हैं।
खैर, मुद्दे की बात पर आते हैं। हमने पूछा—”आपकी पीड़ा क्या है?”
वह बोला—”काश! मैं भारतवासी होता। मैं भारतवासी नहीं हूँ, यह मेरे मन की बहुत बड़ी पीड़ा है।”
मैं बोला—”ऐसा क्या हुआ?”
बोला—”यदि मैं भारत में जन्मा होता तो आज मेरी जाति के लोग ‘एडिसन! एडिसन!’ चिल्लाते। मेरे द्वारा आविष्कार किए गए बल्बों की माला गले में डालकर चौराहों पर घूमते। दूसरी जाति के लोगों से कहते—हमारे दादा ने बल्ब बनाया है। सबके बल्ब उतारकर घरों में अँधेरा करने का हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। आज हमारी जाति की वजह से ही सबके घरों में रोशनी है। एडिसन ने बल्ब बनाया है, तो समझो हमारी जाति ने बल्ब बनाने में बड़ा योगदान दिया है।”
हमने सोचा—एडिसन कह तो सही रहा है।
हमने कहा—”हे महान एडिसन! जाति-पाँति में क्या रखा है?”
यह सुनकर वह तो भड़क गया। बोला—”ये अमेरिकावासी चिल्ला-चिल्लाकर मेरा बखान नहीं करते। वे अतीत को महत्ता न देकर वर्तमान को जी रहे हैं। और प्यारे भारतवासी हजारों साल पहले के अतीत को हृदय से लगाए घूम रहे हैं। काश, ये मेरे अमेरिकावासी भारत से कुछ सीख लेते!”
फिर पूछने लगा—”आपकी जाति क्या है?”
मैं बोला—”मैं तो शिक्षक जाति से हूँ।”
बोला—”मुझे उल्लू मत बनाओ। मैं आजकल ऊपर बैठा केवल भारतीयों की फेसबुक देखता हूँ। शिक्षक कोई जाति नहीं होती। अपनी असली जाति बताओ।”
मैं चौंक गया! सोचा—हद हो गई, हमारे उत्तर भारत में जातियों का इतना बोलबाला हो गया कि एडिसन के कानों में भी इसका डंका बज रहा है।
वह बोला—”मैं चैन से नहीं बैठूँगा। मैं भी जातिवादी लोगों के सपने में आकर झूठ बताऊँगा कि मेरा तुमसे कोई न कोई नाता था। फिर देखना, सभी जातियाँ मुझे अपना बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देंगी। नेता भी चिल्लाएँगे—एडिसन की जाति महान है, एडिसन की जाति ने इस देश के लिए बहुत कुछ किया है। एडिसन का खून उनकी जाति के लोगों में बह रहा है।”
मैं बोला—”एडिसन! तू भगवान के घर चला गया है। सबको एक दिन वहीं जाना है। सबकी जाति मानव जाति है।”
एडिसन बोला—”यह बकवास भरी बातें मुझे मत सुनाओ। आजकल मैं भारत के दौरे पर हूँ। यदि मैं भारत में जन्मा होता तो कभी बल्ब का आविष्कार नहीं करता, बस अपनी जाति का झंडा उठाए घूमता।”
मैं नि:शब्द था। सुबह 4:00 बजे घड़ी का अलार्म बजा। सपना टूटा। मेरा उठने, सुबह की सैर पर जाने तथा दूध लाने का समय हो गया था।
रचयिता
मौसम सिंह
रामपुर मनिहारान, सहारनपुर
पाठ्य सुधार और प्रस्तुति




