सेमिनार

सेमिनार

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में 30 मई 2025 को एक सेमिनार आयोजित की गई जिसका विषय था सरदार पटेल और उनके कृतित्व’!

इस विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री अशोक चौधरी ने कहा कि

“मान्यवर मंच, सम्मानित अतिथि, शिक्षकों, और मेरे प्रिय साथियो,

आज मैं जिस व्यक्तित्व पर अपने विचार प्रस्तुत करने जा रहा हूँ, वे न केवल भारत के इतिहास के एक महान अध्याय हैं, बल्कि आधुनिक भारत की नींव रखने वाले उन विरले नेताओं में से एक हैं, जिनका कृतित्व युगों तक स्मरण किया जाएगा। वे हैं — सरदार वल्लभ भाई पटेल।

सरदार पटेल के जीवन को यदि दो चरणों में समझा जाए, तो पहला चरण है – 1947 से पहले, और दूसरा – 1947 के बाद। इन दोनों कालखंडों में उन्होंने ऐसे कार्य किए, जो भारत की आत्मा में गहरे तक रचे-बसे हैं।

पहला चरण: स्वतंत्रता से पहले का जीवन
सरदार पटेल का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था, जिसकी रगों में क्रांति और देशभक्ति बहती थी। उनके पिता, झबेरभाई पटेल, 1857 की प्रथम स्वतंत्रता क्रांति में झाँसी की रानी की सेना में शामिल होकर अंग्रेजों से लड़े थे। ऐसे वातावरण में पले-बढ़े वल्लभ भाई के अंदर न्याय, स्वाभिमान और संघर्ष का बीज प्रारंभ से ही बोया गया।

सरदार पटेल मूल रूप से वकालत में दक्ष थे, लेकिन जब महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन में उन्हें आमंत्रित किया, तो उन्होंने निजी जीवन और पेशे को त्यागकर देश की सेवा को सर्वोपरि माना।

वे भारत के उन नेताओं में से थे जो किसान आंदोलन से उभरे। 1918 में उन्होंने गुजरात के खेड़ा आंदोलन का नेतृत्व किया, जहाँ किसानों से अत्यधिक कर वसूली के विरोध में उन्होंने अंग्रेजों के सामने सिर नहीं झुकाया। इसी आंदोलन में उनके नेतृत्व को देखकर महात्मा गांधी ने उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि दी — एक उपाधि जो उनके कृतित्व की पहली पहचान बनी।

दूसरा चरण: स्वतंत्रता के बाद का भारत
1946 में जब भारत की अंतरिम सरकार बनी, तो सरदार पटेल को गृह मंत्री का महत्वपूर्ण कार्यभार सौंपा गया। लेकिन 1947 में जब देश आज़ाद हुआ, तब उन्हें जो कार्य सौंपा गया, वह अभूतपूर्व था — भारत को एकीकृत करना।

भारत की स्वतंत्रता के समय देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी — 565 देशी रियासतों को एक राष्ट्र में सम्मिलित करना। कुछ रियासतें पाकिस्तान में मिलना चाहती थीं, कुछ स्वतंत्र रहना चाहती थीं। ऐसे कठिन समय में सरदार पटेल ने राजनयिक कौशल, राजनीतिक समझदारी और कठोर संकल्प से यह असंभव कार्य संभव कर दिखाया।

उनकी रणनीति और दृढ़ता का परिणाम था कि केवल 13 रियासतें पाकिस्तान में गईं, जबकि शेष सभी भारत में विलय कर दी गईं। इस कारण उन्हें ‘भारत का बिस्मार्क’ कहा गया — उस ऐतिहासिक नेता के समान जिसने जर्मनी को एक किया था।

उनका कृतित्व केवल राजनीतिक सीमाओं तक सीमित नहीं था, वे एक कुशल प्रशासक, स्पष्ट दृष्टिकोण वाले नेता, और दूरदर्शी राष्ट्रनिर्माता थे। उन्होंने प्रशासनिक सेवा, अखिल भारतीय सेवाओं की नींव रखी और एक ऐसी व्यवस्था बनाई, जो आज भी देश की रीढ़ है।

निष्कर्ष
सरदार पटेल का जीवन हमें सिखाता है कि राष्ट्र निर्माण केवल भाषणों या नीतियों से नहीं होता — उसके लिए त्याग, संकल्प और साहस की आवश्यकता होती है। उन्होंने हमें सिखाया कि एक सच्चा नेता वह होता है जो स्वयं के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए सोचता है।

आज यदि भारत एक सशक्त, संगठित और अखंड राष्ट्र है, तो उसमें लौह पुरुष सरदार पटेल का अमूल्य योगदान है।

आइए, हम सब उनके कृतित्व से प्रेरणा लें और एकजुट भारत की भावना को आगे बढ़ाएं।

धन्यवाद।”

चित्रशाला

सूचना सूत्र

श्री अशोक चौधरी

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