दीपोत्सव का असली अर्थ
जब दान बन जाए आनंद का माध्यम
दिवाली केवल दीपों का पर्व नहीं है, यह उस उजाले का उत्सव है जो दिलों में जगता है — जब कोई किसी अनजान के जीवन में मुस्कान बनकर उतरता है। इसी भावना को आत्मसात करते हुए शाश्वत कल्याण न्यास हर वर्ष इस पावन अवसर पर “वृहद दान कैंपेन” का आयोजन करता है।
हर घर में दीप जले, हर आँगन में हँसी गूँजे — यही इस न्यास की प्रेरणा रही है। बीते कई वर्षों से यह संगठन समाज के वंचित वर्गों तक त्योहार की खुशियाँ पहुँचाने का कार्य कर रहा है। नये कपड़ों से लेकर मिठाइयों, चॉकलेट, जूतों और स्टेशनरी तक — प्रत्येक वस्तु में केवल वस्त्र या वस्तु नहीं, बल्कि संवेदना का स्पर्श समाहित होता है।
इस वर्ष इस ‘उल्लास वितरण’ अभियान में मयूर स्कूल के बच्चों ने भी भागीदारी निभाई। बच्चों की छोटी-सी मदद और उत्साह ने इस अभियान को और अधिक जीवंत बना दिया — क्योंकि जब अगली पीढ़ी सेवा के संस्कारों से जुड़ती है, तभी समाज में स्थायी परिवर्तन संभव होता है।
शाश्वत कल्याण न्यास केवल उत्सवों में ही नहीं, बल्कि वर्षभर शिक्षा, स्वास्थ्य और सशक्तिकरण के क्षेत्र में कार्यरत है। यह अपने affordable model school के माध्यम से उन बच्चों तक शिक्षा का उजाला पहुँचा रहा है जिनके घरों में कभी किताबों की गंध तक नहीं पहुँची थी।
इसके अतिरिक्त, झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों के बच्चों के लिए रचनात्मक प्रतियोगिताएँ, महिलाओं के लिए स्वास्थ्य जागरूकता सत्र और क्राफ्ट कार्यशालाएँ इस न्यास की सतत गतिविधियों का हिस्सा हैं।
ऐसे ही प्रयास यह दर्शाते हैं कि समाज में सेवा केवल दान का रूप नहीं है — यह मानवता का विस्तार है।
चाहे भारतीय जनसेवा पंचायत न्यास हो या शाश्वत कल्याण न्यास — इन संस्थाओं की मूल भावना एक ही है:
“जहाँ तक पहुँचे उजाला, वहाँ तक पहुँचे करुणा।”
समाज को चाहिए कि इन प्रयासों से प्रेरणा लेकर और भी ऐसे न्यासों की स्थापना करे, जो संवेदना को व्यवहार में उतार सकें। जब हर गली, हर मोहल्ला, हर विद्यालय और हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में किसी के जीवन में प्रकाश फैलाएगा — तब सच में दिवाली केवल एक दिन नहीं, बल्कि हर दिन का पर्व बन जाएगी।
यही शाश्वत कल्याण की परिभाषा है —
जहाँ सेवा ही उत्सव हो, और उत्सव ही जनकल्याण का माध्यम। ✨
 
 
 
 
 
सूचना स्रोत
श्रीमती रीना वर्मा जी
पाठ्य उन्नयन और विस्तार व प्रस्तुति


				
 