शब्दों की सरगम

शब्दों की सरगम

प्रस्तुत कविता की पंक्तियाँ एक संवेदनशील आत्मा की अंतर्यात्रा को शब्द देती हैं। यह रचना एक ऐसे कवि की भावनात्मक अभिव्यक्ति है, जो शब्दों के माध्यम से अपने भीतर उठते तरंगों को सरगम बनाकर गाता है। वह भावनाओं के इकतारे से जीवन के विविध रंगों को स्पर्श करता है, और कागज़ की कश्ती में सवार होकर रोज़ नई अनुभूतियों का किनारा पाता है। शबनम की छोटी-सी बूँद में समंदर भरने का साहस लिए यह कवि बाहर की दुनिया से भले ही विजयी हो, पर भीतर की हार को सच्चे मन से स्वीकारता है। यही स्वीकारोक्ति इसे विशेष बनाती है—गहराइयों में डूबने और स्वयं से टकराने का अद्भुत साहस।

मैं शब्दों की सरगम गाता,

भावों का इकतारा हूँ।

मैं कागज़ की कश्ती चढ़कर

पाता रोज़ किनारा हूँ।।

शबनम की बूंदों को लेकर,

मैं सागर भरने वाला ।

सारे जग से जीत चुका मैं,

ख़ुद ही ख़ुद से हारा हूँ।।

रचनाकार

dAyA shArmA (vAishnAv)