“शठे शाठ्यं समाचरेत्”
पहलगाम में जिसने मारा भारत माँ के लालों को ।
उन साॅंपों से पहले कुचलो दूध पिलाने वालों को ।।
कब तक नाम धर्म का लेकर मानवता को खाओगे ।
जल्दी सीने छलनी होंगे कहाँ भागकर जाओगे ।।
जाति-धर्म के पक्षपात में साॅंप पालने वालों को ।
खा थाली में छेद बनाते ऐसे छुपे दलालों को ।।
ख़ून के बदले ख़ून बहाओं हत्यारों के सीने का ।
मानवता का ख़ून बहाकर हक़ क्या उनको जीने का।।
आतंकी के मरने पर जो रोने को आ जाते हैं ।
न्यायालय में चोगा़ पहने लड़ने को आ जाता है।।
आज विभीषण जयचंदों को बेनकाब करना होगा ।
आतंकी मरने से पहले इन सब को मरना होगा ।।
dAyA shArmA (vAishnAv)