शिक्षा में नवाचार
समय की आवश्यकता और सही उद्देश्य
शिक्षा केवल किताबों तक सीमित ज्ञान नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा माध्यम है जो व्यक्ति को जीवन जीने की सही दिशा और समस्याओं का समाधान खोजने की क्षमता प्रदान करता है। पारंपरिक रूप से हमारी शिक्षा प्रणाली अंग्रेजी विचारक मैकाले की सोच पर आधारित रही, जिसका मूल उद्देश्य प्रशासनिक बाबू तैयार करना था। आज भी हम उसी ढर्रे पर चल रहे हैं जहाँ अंक, डिग्री और सरकारी नौकरी शिक्षा का अंतिम लक्ष्य मान लिया गया है।
लेकिन क्या यही शिक्षा का असली उद्देश्य है? साक्षरता दर बढ़ने के बावजूद यदि शिक्षित लोग भी अपराध में बढ़ोतरी कर रहे हैं, तो यह साफ है कि हम केवल “शिक्षित” हो रहे हैं, “दीक्षित” नहीं। शिक्षा का वास्तविक मकसद यह होना चाहिए कि व्यक्ति समाज में सम्मान, सहयोग और जिम्मेदारी के साथ जी सके तथा जीवन की चुनौतियों का सहजता से समाधान ढूँढ पाए।

हाल ही में आई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने इस दिशा में उम्मीद जगाई है। इस नीति में नैतिक मूल्यों, संस्कारों और राष्ट्रभावना से परिपूर्ण नागरिक तैयार करने पर बल दिया गया है। 34 वर्षों बाद यह एक बड़ा कदम है, परंतु इसे प्रभावी बनाने के लिए शिक्षा में निरंतर नवाचारों का समावेश जरूरी है।
नवाचार क्यों आवश्यक हैं?
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दुनिया तेजी से बदल रही है, जीवन शैली बदल रही है, ऐसे में शिक्षा भी समय के साथ बदलनी चाहिए।
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नवाचार शिक्षा को बोझ नहीं, आनंददायक अनुभव बना देते हैं।
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बच्चों में सीखने की जिज्ञासा और विद्यालय में ठहराव बढ़ता है।
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नए तरीके से सिखाने पर शिक्षक कम समय और संसाधनों में बेहतर परिणाम दे सकते हैं।
सबसे बड़ी चुनौती
हर शिक्षक स्वभाव से नवाचारी नहीं हो सकता, लेकिन नवाचारों का उपयोग करना हर शिक्षक के लिए अनिवार्य है। इसके लिए शासन और प्रशासन को शिक्षकों में विश्वास जगाना, उन्हें प्रोत्साहित करना और संसाधन उपलब्ध कराना जरूरी है।
शिक्षा का असली उद्देश्य
नवाचारों का अंतिम मकसद केवल नई तकनीक सिखाना नहीं, बल्कि ऐसे नागरिक तैयार करना है जो संवेदनशील, जिम्मेदार और समाधान खोजने में सक्षम हों। शिक्षा को “वन-वे” नहीं बल्कि “टू-वे” संवाद बनाना होगा, जहाँ छात्र केवल सुनें नहीं बल्कि सोचें, समझें और बदलाव का हिस्सा बनें।
शिक्षा में नवाचार समय की मांग है। जब तक हमारी शिक्षा व्यवस्था अंक और डिग्री तक सीमित रहेगी, तब तक हम केवल ‘पढ़े-लिखे’ लोग ही तैयार करेंगे। वास्तविक रूप से शिक्षित समाज वही होगा जहाँ ज्ञान के साथ-साथ मूल्य, सोचने की स्वतंत्रता और जीवन जीने की कला भी सिखाई जाए। नवाचारों के सतत प्रयोग से ही यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
रचयिता
हंसराज हंस
पाठ्य विस्तार
प्रस्तुति