श्रद्धा सुमन स्मरण में

श्रद्धा सुमन स्मरण में

प्रो. जगदीप छोकर

लोकतंत्र के प्रहरी का अवसान

श्री जगदीप छोकर जी

भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम, यानी 1857 की क्रांति से लेकर 1947 में देश की आज़ादी तक, हमने अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करने के लिए लाखों कुर्बानियाँ दीं।

आज़ादी के बाद लोकतंत्र की जड़ें भले ही मजबूत हुईं, पर राजनीति में गिरावट का दौर उसी समय से शुरू हो गया था।

एक शायर ने उस दौर पर लिखा था —

“याद करो सन छियालिस की बातें,

जब काले-गोरे बनियों में होती थी सौदे की बातें।”

कहा जाता है कि इस सच्चाई भरी पंक्ति के कारण शायर को नेहरू जी ने जेल भेज दिया था।

परंतु! विडंबना यह है कि वह ‘सौदेबाज़ी’ आज तक भी जारी है। जनमानस में यह प्रश्न बार-बार उठता रहा है कि राजनीति में आई इस गिरावट को कौन सुधारेगा।

लोकतंत्र सुधार की पहली झलक देश ने टी. एन. शेषन के कार्यकाल में देखी।

इसके बाद जनता दल के अरुण श्रीवास्तव ने चुनाव सुधार की मुहिम शुरू की।

उसी समय यह तथ्य सामने आया कि एक संसदीय क्षेत्र के चुनाव का खर्च लगभग पाँच करोड़ से बढ़कर दो सौ करोड़ रुपये तक पहुँच गया — यानी लोकतंत्र खतरे में था।

इसी बीच सत्ता पक्ष ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना लागू की, जिसके माध्यम से उद्योगपतियों से करोड़ों रुपये का प्रवाह सत्तारूढ़ दल की ओर होने लगा।

जनता इस सबको बारीकी से देख रही थी कि तभी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) नामक संस्था ने हस्तक्षेप किया।

इस संस्था की स्थापना समाज के कुछ जिम्मेदार, शिक्षित और दूरदर्शी नागरिकों ने की थी।

उनमें प्रमुख नाम था — प्रोफेसर जगदीप छोकर, जो हरियाणा के पानीपत ज़िले के पट्टी कल्याण गाँव के निवासी थे।

एक छोटे से गाँव से निकलकर IIM अहमदाबाद में प्रोफेसर बने छोकर साहब ने अपने जीवन का हर क्षण लोकतंत्र की मजबूती और पारदर्शिता के लिए समर्पित किया।

उन्होंने ADR के माध्यम से चुनावी वित्तीय पारदर्शिता को लेकर अभूतपूर्व काम किया।

जब ADR ने इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और माननीय मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने उस पर ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, तो पूरे देश में चर्चा छा गई।

उसी विषय पर मेरा भी एक साक्षात्कार हुआ था, जिसे लाखों लोगों ने देखा और सराहा।

12 सितंबर 2025 को शाम 4 बजे, 81 वर्ष की आयु में, दिल्ली में प्रो. जगदीप छोकर का निधन हो गया।

यह सिर्फ एक व्यक्तित्व का नहीं, बल्कि एक विचार का अवसान है — वह विचार जिसने भारतीय लोकतंत्र को और अधिक स्वच्छ, सशक्त और जनोन्मुख बनाने की दिशा दिखाई।

हम उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और यह आशा करते हैं कि जिम्मेदार नागरिक उनकी इस मुहिम को आगे बढ़ाएँगे।

विजेंद्र कसाना

एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया

दिनांक: 12 सितंबर 2025