श्री मोहनलाल वर्मा जी का आलेख

श्री मोहनलाल वर्मा जी का आलेख

आलेख

✍️ अखंड भारत और स्वतंत्रता ✍️

स्वतंत्रता दिवस हमारे लिए केवल उत्सव का दिन नहीं, बल्कि आत्मावलोकन का अवसर है।

दिव्य चेतना और राष्ट्र निर्माण

मानव जीवन केवल शरीर तक सीमित नहीं है। उसमें एक दिव्य चेतना है, जो यदि सही दिशा में प्रवाहित हो तो दिव्य राष्ट्र निर्माण का आधार बनती है। महर्षि अरविंद ने इसे “दिव्य चेतना का अवतरण” कहा।

मिथक और इतिहास

भारतीय संस्कृति में “मनु और शतरूपा” या “देवनारायण अवतार” जैसे प्रसंगों को विज्ञान “मिथक” कहकर नकार देता है, परंतु हमारी संस्कृति इन्हें इतिहास का मार्गदर्शक मानती है। हर युग में मिथक ने इतिहास को चलाया और समाज को दिशा दी।

मनुष्य और पशु में भेद

शरीर की बनावट में मनुष्य और पशु में बहुत समानता है। अंतर केवल मन और चेतना का है। यदि मनुष्य अपनी चेतना का सही उपयोग न करे, तो उसका आचरण पशु समान हो जाता है।

4. स्वतंत्रता की असलियत

स्वतंत्रता केवल बंधन बदलने का नाम है। एक बंधन से मुक्त होकर हम किसी दूसरे बंधन में बंध जाते हैं। राष्ट्र और राष्ट्रीयता भी मन की मान्यता हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। फिर भी, भूमि विशेष पर रहने वाले लोग ही राष्ट्र का स्वरूप बनाते हैं।

5. विभाजन और अखंड भारत

भारत की भूमि अखंड है। मुसलमानों ने स्वतंत्रता के नाम पर विभाजन किया, परंतु वे अपनी मातृभूमि से वास्तव में अलग नहीं हो सकते। केवल सत्ता की लालसा ने भारत के टुकड़े किए।

वर्तमान चुनौती – सांप्रदायिकता

आज भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती सांप्रदायिक मानसिकता है। इतिहास गवाह है कि बार-बार हिंदुओं की उदारता का दुरुपयोग हुआ है।

डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि मुसलमान राजनीति में गुंडागर्दी अपना चुके हैं।

श्री अरविंद ने चेताया था कि हिंदू-मुस्लिम एकता केवल तमाशा बन गई है और हिंदुओं को संगठित होना ही समाधान है।

वीर सावरकर ने कहा था कि राजनीति का हिंदूकरण और हिंदुत्व का सैनिकीकरण आवश्यक है।

7. समाधान

हिंदू समाज को आत्मविश्वास जगाना होगा। अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक श्रेष्ठता का पुनर्निर्माण करना होगा ताकि विभाजन जैसी गलतियां दोबारा न हों।

अंतिम संदेश

न्याय और सत्य की ही सदा विजय होती है। अन्याय और असत्य चाहे कितने समय तक टिके रहें, अंततः उनका पतन निश्चित है।

रचनाकार

श्री मोहनलाल वर्मा

पाठ्य उन्नयन 

 

प्रस्तुति