शुभदा भार्गव का आत्मकथ्य
शुभदा भार्गव का जन्म हरियाणा के पटौदी में हुआ। उनके नाना उस समय पटौदी में तहसीलदार के पद पर कार्यरत थे। नाना के पटौदी नवाब मंसूर अली ख़ान पटौदी के परिवार से विशेष संबंध थे, और उनके घर आना-जाना लगा रहता था। नवाब की पत्नी जब शुभदा जी के घर आईं और उन्हें देखा तो उनके सौंदर्य से प्रभावित होकर उनका नाम “हूर” रखा — जिसका अर्थ है ‘अत्यंत सुंदर’।
शुभदा जी के पिताजी भारतीय रेलवे में स्टेशन मास्टर थे। उनकी पोस्टिंग बाँदीकुई (राजस्थान) में हुई, जहाँ उन्होंने अपना बचपन बिताया। प्रारंभिक शिक्षा रेलवे प्राइमरी स्कूल, बाँदीकुई से हुई और आगे रेलवे हायर सेकेंडरी स्कूल से पूरी की। उच्च शिक्षा हेतु उन्हें बाहर जाना पड़ा क्योंकि बाँदीकुई में उस समय कॉलेज नहीं था। उन्होंने आर.आर. कॉलेज, अलवर से बी.कॉम, जयपुर से एम.कॉम, जयपुर के सत्य साईं कॉलेज से C.Lib. (लाइब्रेरी साइंस) और फिर एम.ए. (सामाजशास्त्र) की उपाधियाँ प्राप्त कीं।
शिक्षा के साथ-साथ खेलों में भी उनकी विशेष रुचि रही। वे डॉजबॉल और खो-खो जैसी खेल प्रतियोगिताओं में रेलवे टीम की कप्तान रहीं और क्रॉस-कंट्री दौड़ में भाग लेकर रेलवे टीम का हिस्सा बनीं। वे बाँदीकुई से जयपुर तक दौड़कर अभ्यास के लिए जाती थीं, हालांकि बाद में यात्रा में कठिनाइयों के चलते उन्हें इसे बंद करना पड़ा।
विवाह के पश्चात वे एक संयुक्त परिवार में रहने लगीं। घर की जिम्मेदारियों के साथ-साथ साहित्य के प्रति उनकी रुचि धीरे-धीरे विकसित हुई। प्रारंभ में वे लिखती तो थीं, परंतु उसे साझा नहीं करती थीं। बाद में उनकी परिचिता प्रतिभा ने उन्हें साहित्यिक समूह से जोड़ने का सुझाव दिया। विनीता अशित मैम के मार्गदर्शन में उन्होंने सक्रिय रूप से साहित्य जगत में प्रवेश किया। तब से उनकी लेखनी और अध्ययन निरंतर जारी है।
वे घर पर ट्यूशन भी पढ़ाती थीं, किन्तु कोविड-19 महामारी के दौरान बच्चों का आना बंद हो गया और यह कार्य समाप्त हो गया। संयुक्त परिवार में रहने के कारण दिन में समय कम मिलने पर वे रात में, विशेषकर काम समाप्त होने के बाद 10 बजे से 12-1 बजे तक लिखती हैं। कभी-कभी थकावट के चलते लिख पाना संभव नहीं होता, फिर भी वे प्रयासरत रहती हैं।
परिवार में उनकी भूमिका अत्यंत सम्मानजनक रही है। कई लोग उन्हें अपने घर की “रीढ़” बताते हैं। यह सुनकर उनकी माँ और परिवारजन भावुक हो उठे। उनके भाई-बहनों को उन पर गर्व है। उन्होंने परिवार की कमान पूरी जिम्मेदारी और कुशलता से संभाली है।
साहित्य क्षेत्र में भी उन्होंने उल्लेखनीय योगदान दिया है। उनकी कविताएँ, कहानियाँ, लघुकथाएँ विभिन्न साझा साहित्यिक मंचों तथा पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। दैनिक भास्कर में उनकी लघुकथाएँ प्रकाशित हुईं। वैश्विक हिंदी संस्थान, अमेरिका द्वारा प्रकाशित पुस्तक में उनकी रचनाएँ सम्मिलित हुईं। जोधपुर से प्रकाशित नवांकुर पुस्तक में भी उनकी कविता प्रकाशित हुई। विभिन्न मंचों से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।
वर्तमान में उनके पति और उनके भाई प्रिंटिंग प्रेस का संचालन करते हैं, जिसमें वे हिंदी की प्रूफरीडिंग का कार्य संभालती हैं। भाषा की शुद्धता और त्रुटिहीन प्रस्तुति को लेकर उनकी विशेष सजगता है। वे स्वयं को एक प्रमाणित प्रूफरीडर मानती हैं और लिखित सामग्री को परिष्कृत करने में सहयोग देती हैं। व्यापार में भी वे सक्रिय भागीदारी निभाती हैं।
साहित्यिक योगदान के अतिरिक्त वे समाज सेवा में भी अग्रणी भूमिका निभाती हैं। बुलंदी ग्रुप द्वारा आयोजित 408 घंटे के लगातार कविता पाठ में वे सक्रिय सहभागी रहीं, जो वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हुआ। आस-पड़ोस में यदि कोई बीमार या संकटग्रस्त होता है तो वे भोजन की व्यवस्था स्वयं करती हैं। हाल ही में ब्रह्मपुरी क्षेत्र में जलभराव की स्थिति में उन्होंने स्वयं भोजन बनाकर जरूरतमंदों तक पहुँचाया। वे पैकेट बंद भोजन की बजाय हाथ से बना भोजन देना अधिक पसंद करती हैं, जिससे उन्हें आत्मसंतोष मिलता है।
इस प्रकार शुभदा भार्गव ने शिक्षा, खेल, परिवार, साहित्य और समाज सेवा — सभी क्षेत्रों में संतुलन बनाए रखते हुए निरंतर कार्य किया है। सीमित समय और अनेक जिम्मेदारियों के बीच वे अपनी रचनात्मकता और संवेदनशीलता से समाज में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। भाषा और अभिव्यक्ति की शुद्धता पर उनका विशेष ध्यान है, जो उनके प्रूफरीडर के रूप में कार्य की उत्कृष्टता को दर्शाता है।
सूचना स्रोत
श्रीमती पुष्पा क्षेत्रपाल, अजमेर (राजस्थान)
पाठ्य उन्नयन
प्रस्तुति