ग़ज़ल
कोई इस दुनिया में करता उपकार नहीं है
सीख लिया जीने का सलीका फिर हार नहीं है।
सबसे हिल मिल कर रहना मन की बातें करना
इससे अच्छा दुनिया भर में व्यवहार नहीं है।
कितना भी कर ले चोरी डकैती फरेबी धंधा
फिर भी आदमी इनका आज गुनहगार नहीं है।
भीख माँगता फिरता निज हाथों से गली गली
समझो पर आदमी इतना भी लाचार नहीं है।
झगड़े बंद कर दें रामो रहीम के नाम पर
लेकिन लोग इसके लिए भी तैयार नहीं हैं।
रिश्वत की खाते हैं श्योराज ज्यादातर लोग
इन पर कोई न्याय व्यवस्था का भार नहीं है।
बरसात
पहली ही बरसात में, हुए रास्ते बंद।
ऐसे पक्के काम भी, करवाते जन चंद।।
सड़कें कुछ तो बह गई, हुई जहां बरसात।
कुछ गांवों में देख लो, कीचड़ के हालात।।
मत्तगयंद सवैया
बादल है बरसा धरती पर,नीर बहा सब ताल भरे है
दादुर हर्ष रहे मन में सब,पेड़ हुए अब खूब हरे है।
अंकुर बीज हुए नव है अब,जो धरती पर पाॅंव धरे है
कोमल कोमल पात खिले तब, भू पर निर्झर नीर झरे है।
मनहरण घनाक्षरी
सभी एक है मानव, इस दुनिया के यारों
आगे बढ सबसे ही, तुम तो प्यार करो।
मनभेद करो नही, मतभेद रखो चाहे
इस भव सागर से,नैया को पार करो
कटुता त्यागो मन की,चिंता त्यागो धन की
सबसे सरल यहां जी व्यवहार करो।
क्या जायेगा साथ में,क्या पायेगा हाथ में
कर्म सभी बात यही मन में धार करो।
मदिरा सवैया
बादल ये जमके बरसे जब,ताल भरे झट से सब है
नैन झरे तब निर्झर साजन,मौन रहे बस ये लब है।
सावन में मन मोर हुआ अब,देर यहां तुम क्यों करते
आकर सावन में तुम साजन, क्यों दुखआज नहीं हरते।
रचनाकार
श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’
मालपुरा