सार छंद
होनी तो होगी दुनिया में, अनहोनी को टालो,
सोच-समझकर चलो सड़क पर, जीवन अच्छा पालो।
वाहन चलाओ दुपहिया तो, हेलमेट अपनाओ,
सीट-बेल्ट लगाकर बाहर, चौपहिया से जाओ।
जान बचेगी तो पायेंगे, ढेरों माल खजाना,
इस जीवन में होगा फिर ही, रिश्ते नये सजाना।
रियल लाइफ जीना सीखो, रील बनाना छोड़ो,
झूठ बोलना बंद करो अब, सत से नाता जोड़ो।
पढ़ो लिखो विद्वान बनो तुम, सीखो जीवन जीना,
संघर्षों से लड़ना सीखो, गम को हँसकर पीना।
दुर्घटना से बचो सदा तुम,प्यार भरो सीने में,
देखो फिर आयेगा तुमको,मजा यहां जीने में।
अभी हाथ में जो जीवन है, लौट नहीं आयेगा,
करो काम सब सोच-समझकर , फिर पछतायेगा।
दुर्घटना से देर भली है, सज्जन जन ये कहते,
कहने वाले चौराहों पर, खड़े सदा ही रहते।
कुंडलिया छंद
आई ऋतु बरसात की,भरे सभी है कूप
बारिश से इस भूमि का,निखरा कितना रूप।
निखरा कितना रूप, यहाॅं पर बहते झरने
घन आये बन मीत,दु:ख धरती का हरने।
कह सेवक कविराय,खूब हरियाली छाई
हरे हुए सब पेड़, बरसात की ऋतु आई।
सार छंद
शिव जी आये है धरती पर, कहता सावन प्यारा,
दर्शन कर लो गंगा की हैं, लाये पावन धारा।
बाबा ये भोले भंडारी, भंडारे है भरते,
मनोकामना पूरी कर ये, दुखड़े सबके हरते।
गूंज रहा बम बम की ध्वनि से, जग ये देखो सारा,
शिवजी आये हैं धरती पर, कहता सावन प्यारा।
बेल पत्र हैं इनको प्यारे, प्यारा भांग धतूरा,
जो जन इनको प्रसन्न करते, काम बने हैं पूरा।
देवों के भी महादेव का, रूप अनोखा न्यारा।
शिवजी आये हैं धरती पर, कहता सावन प्यारा।
रचनाकार
श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’
मालपुरा
चित्र सृजन
प्रस्तुति