।।सभी को शुभ दीपावली।।
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धन लक्ष्मी का वास हो, खुशियाँ हों घर द्वार।
मंगल हो दीपावली, प्यारा ये त्योहार।।
रिश्ते यूं सजते रहें, जैसे सजते दीप।
जगमग दुनिया को करें, जब सब रहें समीप।।
दीप दान कर प्यार से, खूब बढ़ायें मेल।
ये जीवन जो दिख रहा, चंद दिनों का खेल।।
वृद्धजनों का जब मिले, हम सबको आशीष।
आगे हो के लीजिए, झुका चरण में शीश।।
फलता है आशीष ही, वृद्धजनों का यार।
अपने ये भगवान हैं, ये ही पालनहार।।
भूलो मान गुमान को, बरसाओ बस प्रीत।
आई है दीपावली, लेकर प्यारी रीत।।
दीपों की यह रोशनी, करे तमस का नाश।
ऐसी है दीपावली, सब पर्वों से खास।।
।।दिल में दीप जलायेंगे।।
सपनों को पाना है हमको, दिल में दीप जलायेंगे।
खुशहाली का मूल मंत्र जो, ढूंढ उसे हम लायेंगे।
दीप जलेंगे घर घर तो ये, अंधियारा भग जायेगा।
आशीष मिले बड़कों का तो, भाग्य भी जग जायेगा।
सभी बड़ों को घर घर जाकर, चरणों ढोक लगायेंगे
सपनों को पाना है हमको, दिल में दीप जलायेंगे।
गले मिलेंगे इक दूजे के, पर्व दिवाली आया है।
दुनिया भर की खुशियां ये तो, सजा संग में लाया है।
बांटेंगे हम खूब मिठाई, मुँह मीठा करवायेंगे।
सपनों को पाना है हमको, दिल में दीप जलायेंगे।
नये सजा कर दिल में सपने, उनको साकार करेंगे।
जीवन के पथ में संकट, हम मिलकर पार करेंगे।
हार मान जो बैठ गये हैं, उनको जीत दिलायेंगे।
सपनों को पाना है हमको, दिल में दीप जलायेंगे।
अपनों का जब साथ मिले तब, सदा दिवाली होती है।
बिन अपनों के सजी दिवाली, खाली खाली होती है।
आलोकित कर दे दिल सबका, ऐसा दीपक लायेंगे।
सपनों को पाना है हमको, दिल में दीप जलायेंगे।
कुण्डलिया छंद एक
छाये है अब माफिया, जग में चारों ओर।
दूषित सबको कर रहे, कर कर मन का शोर।।
कर कर मन का शोर, आघात करते जन पर।
नज़रें इनकी तेज, गड़ी हैं सबके धन पर।।
कर वे झूठ फरेब, सदा पैसों को ध्याये।
देखो चारों ओर, माफिया जग में छाये।।
कुण्डलिया छंद दो
कुछ तो इन हालात से, कुछ बिगड़े पा प्यार।
बच्चों का ये हाल है, आज देख लो यार।।
आज देख लो यार, उतारकर चश्मा काला।
देख रहा माहौल, बाल ये नवयुग वाला।।
फैल रहा अब झूठ, दूर है हमसे सच तो।
संस्कृति का नाश, रहे हैं कर मानव कुछ तो।।
कुण्डलिया छंद तीन
दीपों का त्योंहार ये, देता है उत्साह।
करो उजाला प्यार का, दूर करो तुम डाह।।
दूर करो तुम डाह, सभी को अपना मानो।
ईश्वर की संतान, सभी को जग में जानो।।
अंतर्मन में देख, चुनो मोती सीपों का।
प्यारा ये त्योहार, झिलमिलाते दीपों का।
कुंडलिया छंद चार
मिट्टी के इस दीप में, भरो स्नेह का तेल।
जगमग फिर जग को करो, रख सबसे ही मेल।।
रख सबसे ही मेल, ज्ञान का करो उजाला।
झाड़ू लेकर हाथ, झाड़ लो मन का जाला।।
दीपों का त्योहार, प्यार की लाया चिट्ठी।
मिट्टी का तन यार, बनेगा फिर से मिट्टी।।
मुक्तक
सहज गमों को पीना भूल गये हैं।
आज यारो हम जीना भूल गये हैं।
न जाने किस उधेड़बुन में लगे हैं,
रिश्तों नातों को सीना भूल गये हैं।
क्षणिका
ए सी बस क्या यहाँ नई नई ही चली है।
इसमें बैठी सवारियाँ ऐसे क्यों जली हैं।
उस जलती बस का भयानक मंजर देखकर,
लोगों के मन में आज तक मची खलबली है।
अतुकांत कविता
।।दिवाली।।
मिट्टी का घर
मिट्टी का दिया
स्नेह का तेल
मिट्टी की मटकी
जिसमें था ठंडा नीर
अपनी सी लगती थी,
तब पराई पीर।
पशुधन घर घर
खुश था हलधर,
बैलों की जोड़ी
पुआ पकौड़ी,
सूजी का हलुआ
पटाखों का जलवा,
पशुधन का श्रृंगार
गले घूंघरू का हार,
दीपों की माला
काजल आंखों में
वो दीपक वाला।
लक्ष्मी का पाना
खुशियाँ देने वाला।
घर घर पूजन,
बैलों का होता
साथ सदा
अपनों का होता।
बड़े बुजुर्गों का,
आशीष मिलता
आगे चलकर,
वहीं था खिलता।
इक दूजे के,
गले मिलते
गिले-शिकायत
पट्टे पुराने,
रिश्ते सिलते।
उसको कहते थे दिवाली!
मन हरा सभी का करने वाली।
दिखावट जिसमें जरा नहीं थी
ऐसी दिखती धरा नहीं थी।
आज दिवाली में,
आत्मीयता का है टोटा
लूट मची है जयपुर ,
उदयपुर या फिर कोटा।
त्योहार लोग आजकल
रोज ही मनाते हैं।
दीपावली सा घर को
रोज रोज ही सजाते हैं।
पर पहले वाला,
उत्साह नहीं है
एक दूजे की,
अब तो चाह नहीं है।
कुंडलिया छंद पाँच
भेड़ चाल अब हो गई, सब लोगों की आज।
सबका यारों हो गया, वैसा ही अंदाज।।
वैसा ही अंदाज, हुये है सियार हावी।
भुगतेगी अब यार, इन्हीं को पीढ़ी भावी।।
पैसा जिसके पास, गलेगी उसी की दाल।
दिखती चारों ओर, सभी में ये भेड़ चाल।
।।दोहे।।
अंतर्मन के दीप में, भरें स्नेह का तेल।
शुभ होगी दीपावली, होगा जग में मेल।।
दीपों के इस पर्व का, फैले खूब प्रकाश।
दीपदान कर हाथ से, इसे बनायें ख़ास।।
धन धान्य से आपके, भरे रहें भंडार।
बरसे लक्ष्मी की कृपा, सब घर छप्पर फाड़।।
बड़ों को करूं प्रणाम मैं, छोटों को है प्यार।
शुभ हो ये दीपावली, पावन सा त्योहार।।
दीपक मिट्टी का सजे, स्वदेशी पकवान।
शुभ होगी दीपावली, सबका हो सम्मान।।
सृजक
श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’
मालपुरा
प्रस्तुति


