मुस्कान
जनचेतना मिशन का नैसर्गिक प्रयास
चाहे मन से न भी हो, मुस्कुराना वास्तव में हमारे मन-मस्तिष्क को यह अहसास करा सकता है कि वातावरण खुशनुमा है। शोध बताते हैं कि मुस्कान का यह छोटा-सा शारीरिक प्रयास दिमाग में ऐसे रसायनों को सक्रिय कर देता है, जो मनोभाव को बेहतर बनाते हैं। यही कारण है कि उदासी या विपरीत परिस्थितियों में भी मन हल्का और प्रसन्न महसूस करने लगता है।
जनचेतना मिशन का उद्देश्य भी यही है—समाज को मुस्कान लौटाना। मुस्कान केवल होठों की हरकत नहीं, बल्कि जीवन जीने का सकारात्मक दृष्टिकोण है।
जब किसी गरीब बच्चे को किताब थामने का अवसर मिलता है और उसकी आँखों में अनायास ही चमक आ जाती है,
जब किसी निरक्षर ग्रामीण महिला को पहली बार अपना नाम लिखना आता है और उसके चेहरे पर गर्व की रेखाएँ खिल उठती हैं,
या
जब किसी वृद्धजन को यह महसूस होता है कि वह आज भी समाज के लिए उपयोगी है—तो ये सब मुस्कान के वही स्वरूप हैं जिनकी तलाश हर हृदय करता है।
शासन के समस्त प्रयासों को मूल स्वरूप में लाना, ऐसे प्रयासों से संबद्ध समस्त पक्षों को उनकी जिम्मेदारियों का अहसास कराना, ग्रामीण पुस्तकालयों की स्थापना, असहाय बच्चों की शिक्षा, संस्कारों पर आधारित गतिविधियाँ और जरूरतमंदों की मदद—ये सब जनचेतना मिशन के ऐसे प्रयास हैं, जो हर वर्ग के व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने का कार्य कर रहे हैं। ऐसा जनचेतना मिशन का मानना है।
एक बच्चा जब कहता है “दीदी, अब मुझे भी कहानियाँ पढ़कर सुनाने की ज़रूरत नहीं, मैं खुद पढ़ लेता हूँ” तो वह केवल शब्द या फिर वाक्य भर नहीं, बल्कि समाज को दी गई मुस्कान का प्रतीक बन जाता है।
जनचेतना मिशन मानता है कि मुस्कान बाँटने से बढ़ती है और यही सबसे बड़ी सामाजिक पूँजी है। इस मुस्कान को हर चेहरे तक पहुँचाना ही मिशन का सच्चा प्रयत्न है।
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