“सिवाया में स्मृति-स्पर्श”
(1982-84 के मोदी-कॉन्टिनेंटल प्रसंग)
वो समय था जब सिवाया गाँव की सादगी में उद्योगिक विश्व की हल्की-सी आहट सुनाई देने लगी थी। वर्ष 1982 से 1984 के बीच का वह दौर था, जब मोदी रबर लिमिटेड, मोदीपुरम के वरिष्ठ अधिकारीगण अक्सर हमारे गाँव आया करते थे—पिताश्री महाकवि पंडित ताराचंद्र हारीत जी से मिलने, सलाह लेने, और शायद सिवाया की उस धूल-भरी पर पवित्र मिट्टी से कुछ सीखने।
एक दिन विशेष था।
एल्फ्रेड ग्रोवर, जर्मनी की विश्वविख्यात कंपनी कॉन्टिनेंटल के प्रतिनिधि, पहली बार सिवाया आए। बड़े ही विनम्र भाव से उन्होंने पिताश्री महाकवि ताराचंद्र हारीत जी से अपनी शादी के लिए परामर्श माँगा।
पिता जी ने बिना जल्दबाज़ी के दो दिन का समय माँगा—शायद वे ईश्वर से या अपने भीतर के अनुभव से उत्तर ले रहे थे।
दो दिन बाद, जब वे फैक्ट्री पहुँचे, उन्होंने एल्फ्रेड को उनकी शादी का माह और वर्ष स्पष्ट बता दिया।
यह कोई साधारण बात नहीं थी।
बाद में जब एल्फ्रेड अपनी पत्नी के साथ भारत लौटे, तो उन्हें भी सिवाया ले आए—शायद यह दिखाने कि जहाँ से मार्गदर्शन मिला, वहाँ श्रद्धा से नमन भी आवश्यक है।
उस दिन की एक तस्वीर स्मृति में अमिट रूप से अंकित है—
टाई पहने श्री बी.डी. कपूर,
कोट में श्री वी.के. आनंद,
काले चश्मे में पिताश्री पंडित ताराचंद्र हारीत जी,
और सफेद कुर्ते में, जर्मन महिला के आगे खड़े, गोल-मटोल प्रधानाचार्य डॉ. वीरेंद्र शुक्ल जी – हमारे स्कूल के प्रिंसिपल साहब।
ये केवल लोग नहीं थे – ये समय के साक्षी बन गए।
ये मुलाक़ातें सिर्फ़ औपचारिक नहीं थीं, बल्कि संवेदनाओं, संस्कारों और विश्वास की बुनियाद पर खड़ी थीं।
आइडिया
श्री सुमनेश ‘सुमन’ जी
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