उलझन
जीवन में हम सभी बहुत कुछ सीखते हैं पर एक ही क्षेत्र में रहकर भी सब कुछ क्यूँ नहीं, जबकि पर्याप्त मात्रा में शिक्षक हैं, प्रशिक्षक भी हैं और मार्गदर्शक भी। इतना ही नहीं विविध विषयों का पर्याप्त विस्तार हो जाने के बाद भी विषय सरलीकृत ना होकर और उलझ गए हैं।
कृपा कर इस उलझन को इस प्रकार सीमित शब्दों में सुलझाने की कृपा करें कि सीमित बुद्धिलब्धि वाला भी समझ सके।
सुलझन
इस उलझन के कई कारण हो सकते हैं। एक कारण जिस पर वर्तमान में चर्चा की जा सकती है, वह है- जीवन में ठहराव की कमी। इसे सूचना क्रांति का युग कहा जाता है। हर तरफ से सूचनाओं की अतिवृष्टि हो रही है। हम किसी एक सूचना को समझें, उस पर विचार करें, उससे पहले दूसरी, तीसरी सूचना हमारे आगे आ जाती है। हमारा मन भी विचलित रहता है। तन्मय होकर एक किताब पढ़ना तो दूर, एक लेख तक नहीं पढ़ पा रहे हैं। हर काम को आधा-अधूरा छोड़कर दूसरे काम को लपकने लगते हैं।
सोशल मीडिया- वाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि हमें अनावश्यक जानकारी और ज्ञान दे रहे हैं। भौतिक रूप से हम दिन में शायद 20-30 लोगों से मिल पाएँ लेकिन वर्चुअल दुनिया की वजह से हज़ारों के संपर्क में आ रहे हैं। हर कोई अपना ज्ञान या अज्ञान साझा कर रहा है। ऐसे में बहुत मुश्किल है कि हम किसी विषय का सरल रूप समझ सकें। हमारे पास विश्लेषण का समय नहीं है। हम दूसरी जानकारियों का त्याग करके, उन्हें अनदेखा करके एक पर चिंतन करने की स्थिति में नहीं हैं। ‘आधी छोड़ पूरी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै’ वाली स्थिति हो गई है।
इसका समाधान डिजिटल डेटोक्स है। थोड़े दिन के लिए सोशल मीडिया से दूरी बनाएँ। योग करें, किसी विषय पर गहराई से सोचें, कोई किताब पढ़ें, अपने विचार लिखने की कोशिश करें। इससे जीवन में स्पष्टता आएगी। कुछ दिन सूचनाओं के सागर से दूर रहकर देखें, पाएँगे कि उनके बिना भी जीवन अच्छे से चल सकता है। हमारे जीवन के लिए जो आवश्यक है, उसके लिए बाहर भटकने से अच्छा है, हम भीतर उतरें। भीतर हमें सभी प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हैं। सूचनाओं की अतिवृष्टि से भीतर जो हलचल मची हुई है, वह अगर हम शांत कर पाएँ तो हम गहराई में देख पाएँगे। अशांत पानी में हमें सतह ही दिखती है। पानी अगर शांत हो और स्वच्छ हो तो हम तल भी देख सकते हैं।
रचनाकार
यशवंत, अहमदाबाद
प्रस्तुति