उत्तर भारत में मुस्लिम महिलाओं का शैक्षिक सशक्तिकरण!
मैं एक बार डॉ बदर खान सूरी (आजकल जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी वाशिंगटन में हैं) के बगीचे में बैठा था। वह मुझसे बोले कि
“केरल की कोच्चि शहर में, ‘मुस्लिम महिलाओं में आधुनिक शिक्षा’ को लेकर एक तीन दिवसीय सम्मेलन है। जेएनयू दिल्ली से सोलह सदस्यीय डेलिगेशन सम्मेलन में जेएनयू का प्रतिनिधित्व करेगा। मेरी इच्छा है आप भी उस डेलिगेशन का हिस्सा बने।”
मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा, कभी मेरे चिंतन का विषय नहीं रहा। मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा को लेकर मेरे मन में कोई विजन था भी नही। परंतु सीखने की जिज्ञासा को लेकर मैंने सम्मेलन में जाने के लिए हामी भर दी।
काफी संख्या में बड़े-बड़े स्कॉलर होने के कारण जेएनयू की ओर से केवल एक ही वक्ता को विचार रखने का ऑप्शन मिला। इसलिए मैं केवल श्रोता ही बना रहा।
ज्यादातर वक्ताओं ने मलयालम और अंग्रेजी में अपने विचार रखें। हिंदी में बोलने वाले वक्ता गिने चुने थे। सभी वक्ताओं का भाव यह था कि महिलाओं की दीनी शिक्षा और आधुनिक शिक्षा में सामंजस्य कैसे बैठाया जाए?
सम्मेलन में कुछ महिलाओं से मेरी बात हुई तो पता चला उन दिनों केरल की लड़कियों में नर्सिंग और अन्य पैरामेडिकल कोर्सेज करने का क्रेज था। आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद अधिकतर खाड़ी देशों में अपनी सेवाएं दे रही थी।
वहां की मुस्लिम महिलाओं में मजबूत मनोबल देखने को मिला। अपनी बात रखने में उन्हें जरा भी झिझक नहीं थी। गजब का आत्मविश्वास था उनमे। वे प्रत्येक मुद्दे पर अपने विचार दे रही थी। जिस जिस बारे में हमने बातें की उन्होंने सभी पहलुओं को छुआ।
लौटने के बाद मैंने उत्तर भारत और दक्षिण भारत की मुस्लिम महिलाओं की जीवन शैली में बहुत अंतर महसूस किया। यहां मुस्लिम महिलाओं में वैसा आत्मविश्वास नहीं है। आधुनिक शिक्षा के प्रति वैसी जागरूकता नहीं है। अधिकतर के पास कोई विशेष विजन नहीं है। व्यक्तिगत कैरियर को लेकर योजना का अभाव है। यहां ऐसा विजन देखने को नहीं मिला जो उन महिलाओं के पास था।
इस बड़े अंतर के पीछे अनेको कारण हो सकते हैं। परंतु एक शिक्षक होने के नाते मेरी इच्छा है उत्तर भारत की मुस्लिम महिलाए आधुनिक शिक्षा के प्रति जागरूक हो। उनके पास भी एक विजन हो। पुरुष भी अपने प्रभुत्व वाली सोच को त्याग कर उनका पथ प्रदर्शक बने।
स्त्री-पुरुष मानव जीवन के वाहक हैं। दोनों का महत्व एक दूसरे से कम नहीं है। उत्तर भारत के मुस्लिम सामाजिक संगठनों को भी मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा को लेकर इस तरह के सम्मेलन आयोजित कराने चाहिए। यदि हम सब रूढ़िवादी ख्यालों को छोड़कर तहे दिल से जदीदियाद का इस्तकबाल करें तो एक नई कौम के सलीके का आगाज हो सकता है।
सूचना स्रोत
मौसम सिंह
रामपुर मनिहारान
प्रस्तुति

				
 