विचार गोष्ठी

विचार गोष्ठी

गंगोह। विमुक्त जनजाति अधिकार मंच ने अपने ऐतिहासिक विमुक्त जाति दिवस पर आयोजित गोष्ठी में एक सशक्त और दूरगामी माँग उठाई कि जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग आयोग हैं, उसी तरह विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों के लिए भी एक स्वतंत्र आयोग का गठन किया जाए। मंच ने यह भी स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश की तर्ज़ पर इन्हें उनकी वास्तविक जनसंख्या के आधार पर आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए ताकि सामाजिक न्याय और समान अवसर की अवधारणा साकार हो सके।

कार्यक्रम में वक्ताओं ने स्मरण दिलाया कि अंग्रेजों की फूट डालो और शासन करो की नीति के तहत स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय और सामूहिक विद्रोह का नेतृत्व करने वाली अनेक जातियों को जबरन ‘अपराधी जनजाति’ घोषित कर दिया गया था। उनके विरुद्ध कठोर कानून बनाए गए, जिससे पीढ़ी दर पीढ़ी ये समुदाय सामाजिक बहिष्कार और अपमान का शिकार बने रहे। स्वतंत्र भारत में 31 अगस्त 1952 को ‘अपराधी जनजाति अधिनियम’ समाप्त किया गया और इन जातियों को विमुक्त जनजाति का दर्जा प्रदान किया गया। यह दिन आज भी उनके आत्मसम्मान और स्वतंत्र अस्तित्व की पुनर्स्थापना का प्रतीक माना जाता है।

गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि जिन जातियों ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरुद्ध अपनी असंख्य बलिदानियाँ दीं और क्रूर दमन झेला, उन्हें आज तक उचित अधिकार और सामाजिक सम्मान नहीं मिल पाया है। उन्होंने सरकार से मांग की कि विमुक्त और घुमंतू जनजातियों की दशा सुधारने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं, उन्हें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और आवास जैसी मूलभूत सुविधाओं तक समान अवसर मिले और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए विशेष योजनाएं बनाई जाएं।

इस अवसर पर बलबीर सिंह तोमर, मा. यामीन भारती, लोकेश सलारपुरिया, रवि खटाना, उस्मान बाबू, मांगेराम, अकरम, अमजद बटार, नौशाद चौधरी, परवेज चौधरी, इसराइल चौधरी आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता महावीर सरस ने की तथा संचालन मुस्तकीम चौधरी ने किया।

यह गोष्ठी केवल विमुक्त जनजातियों के अधिकारों की आवाज़ नहीं, बल्कि एक स्मरण-पत्र भी है कि स्वतंत्रता की लड़ाई में जिन समुदायों ने अग्रिम मोर्चे पर खड़े होकर बलिदान दिए, उनका आज सम्मान और हक़ सुनिश्चित किया जाना हर नागरिक और हर सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है।

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