विधाता छंद

विधाता छंद

विधाता छंद
।। गाँव।।

लगे प्यारा मुझे यारो, वही जो गांव मेरा है,
हुआ था जन्म जिसमें ही, अभी फिलहाल डेरा है।
रही है छाँव ममता की, सभी में प्यार बसता है,
गली में देखकर मुझको, जहाँ मनमीत हँसता है।

जहाँ बचपन हमारा भी, सहज ही यार बीता है,
जहाँ हर आदमी प्यारे, सदा आजाद जीता है।
लगे है पेड़ प्यारे से, हवायें खूब बहती हैं,
सजी जो खेत में फसलें, कहानी यार कहती हैं।

मिलेगी गाय भी इसमें, हमें जो दूध देती है,
सभी मजदूर हैं इसमें, इन्हीं के पास खेती है।
लगे है भीड़ पनघट पर, सुबह औ शाम गाँवों में,
लगाती है हिना नारी, उसी के हाथ पाँवों में।

सभी त्योहार जब आते, सभी को हम मनाते हैं,

बजाते ढोल जमकर हम, खुशी के गीत गाते हैं।

नहीं है द्वेष धर्मों का, मुस्लमा-हिंदु रहते हैं,

सभी मिल शाम को सारे, दिलों की बात कहते हैं।

 

रचयिता

श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’मालपुरा

प्रस्तुति