भूमिका
प्रस्तुत वृत्तांत के रचयिता श्री हंसराज जी को साधुवाद उनके वृत्तांत लिखना आरंभ करने के मेरे आग्रह को स्वीकार करने के लिए। उनकी कलम पर पकड़ है और यह उनका द्वितीय वृत्तांत हैं।
मेरी बाड़मेर ट्रिप
ईश्वर कृपा से जीवन में कई क्या निरंतर अवसर मिलते हैं। हां! यह व्यक्ति पर निर्भर है कि वह उनके संदर्भ में उपयुक्त निर्णय ले पाता है कि नहीं। हाल ही में मेरी बेटी अंकिता का महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता (ANM) के पद पर शासकीय सेवा में स्थाई पद पर चयन
हुआ। उसे पदस्थापन बाड़मेर से भी दो सौ किलोमीटर दूर राजस्थान राज्य की सीमा के अंतिम छोर पर बसे गांव सुंदरा में मिलने के कारण वहां जाने का अवसर मिला।
25 दिसंबर 2024
गांव से राशन – पानी व सेवास्थल पर रहने के लिए सारे सामान के साथ चौबीस घंटे का सफर इस भयंकर सर्दी में करना बहुत चुनौती भरा था पर मन में बाड़मेर का रेगिस्तान व वहां रह रहे व्यक्तियों की जीवन शैली को देखने व सरकारी नौकरी को जॉइन करने की पूरी प्रक्रिया को जानने और देखने का भी जोरदार उत्साह था। दोनों बाप – बेटी ने बनेठा गांव से ठीक 12:10 बजे टेंपो से जिला हेडक्वार्टर टोंक पहुंचकर वहां से कुछ आवश्यक कागजात तैयार करवाकर राजस्थान रोडवेज से जयपुर के लिए प्रस्थान किया। टोंक से ही एक और बेटी सपना गुर्जर व उसका भाई अशोक भी हमारे साथ हो लिए। सपना का भी साथ में ही वहीं पर पोस्टिंग हुआ था। हम सबने ट्रेन का टिकट थ्री टियर एसी का पहले ही बुक करवा लिया था। इसलिए वह टेंशन तो हमारे साथ नहीं थी। हम रात के 8:00 बजे जयपुर रेलवे स्टेशन पर पहुंचे। वहां पर हम सब ने घर से लाए पराठों और आलू की जायकेदार सब्जी काआनंद लिया। ट्रेन अपने निर्धारित समय 9:40 पर प्लेटफार्म नंबर तीन पर आ गई। डिब्बे तक भारी भरकर सामान व भीड़भाड़ पहुंचने में बड़ी दिक्कत आई पर मेरा मानना है कि मन में यदि जुनून हो तो हर बाधा से पार पाया जा सकता है। ट्रेन में अपनी सीट पर बैठने के बाद मन में पहली बार एसी डिब्बे में यात्रा करने का आनंद जोरदार था। ट्रेन में प्रत्येक यात्री को कंबल और स्वच्छ चद्दर व तकिया उपलब्ध करवाया गया। ट्रेन में पेंट्री वालों द्वारा खाने के बारे में पूछा गया तथा चाय तथा अल्पाहार सशुल्क प्रदान किया गया। ट्रेन के इस सफर में सर्दी की ठिठुरन भरी रात का बिल्कुल भी पता नहीं चला। बाड़मेर रेलवे स्टेशन पर प्रातः 5:30 बजे हम पहुंचे।
26 दिसम्बर 2024
रेलवे स्टेशन से हम टेंपो लेकर चौहटन चौराहा गये। वहां जाकर सबने गर्मागर्म अदरक वाली चाय का लुत्फ उठाया। यहां से अब हमें सौ किमी दूर गडरा रोड ब्लॉक बीसीएमओ जाना था। अभी तो हमें फिर वहां से भी सौ किलोमीटर आगे राजस्थान राज्य के आखिरी छोर पर बसे सुंदरा गांव जाना था। एक घंटे बाद हमने चौहटन चौराहा से रोडवेज बस में गडरा रोड के लिए यात्रा शुरू की। रास्ते में रेत के टीलों के मध्य खेजड़ी, आंक, केर और बेर के बड़े-बड़े वृक्षों की हरियाली हमारा स्वागत कर रही थी। मानो जैसे कह रही हो कि ‘पधारो म्हारे मरू प्रदेश में’ ऊंचे – ऊंचे टीलों पर बकरियां, गायें झुंड के झुंड स्वतंत्र रूप से मनपसंद घास को चरते हुए उस सुनसान निर्जन स्थान को जीवंत बना रहे थे। गडरा पहुंचकर वहां की प्रसिद्ध मिठाई लड्डू का स्वाद हम सबने चखा। इसके पश्चात वहां से टैक्सी में सुंदरा पोस्टिंग प्लेस के लिए रवाना हुए। मुनाबाव होते हुए हमने पाकिस्तान बॉर्डर का विहंगम दृश्य देखा तथा वहां तैनात बीएसएफ के रक्षकों से बार्डर के बारे में जानकारी ली। जवानों की कर्तव्यनिष्ठा व कर्मठता को देखकर हमें बहुत फख्र कि अनुभूति हुई।
दिन के 12:30 बजे हम सब ने सुंदरा गांव पहुंचकर सबसे पहले सब सेंटर पर अपनी उपस्थित दी। गांव में उपलब्ध सुविधाओं के बारे में गांव वालों से जानकारी ली तथा वहां के सरपंच साहब श्री श्याम सिंह जी से मिले। समस्त गांव वालों का व्यवहार हमारे प्रति बहुत ही अच्छा रहा। सरपंच साहब ने हमारी वहां रहने के लिए सरकारी क्वार्टर की व्यवस्था की।
27 दिसम्बर 2024
अगले दिन वहां से रोहड़ी के धोरे देखने गए। धोरों में बैठकर, लेटकर मन प्रसन्न हो गया। हमने वहा के कुछ फोटो भी क्लिक किए।
सूर्यदेव की सुनहरी धूप और रेत के धोरों से चमकती धरती के सेज पर खूब लोटपोट हुए। इसके बाद हम सब वापस टैक्सी से अपने पोस्टिंग प्लेस सुंदरा गांव आ गए। गांव में दो सौ घरों की कुलआबादी है। पंचायत हेडक्वार्टर है। उच्च माध्यमिक विद्यालय है। मिनी पोस्ट आफिस, पशु चिकित्सालय, बीएसएफ का कैंप, दो परचून के सामान की दुकान हैं। गाय का दूध व छाछ खूब मिलती है। दूध और घी भी सस्ता ही है।राजपूत समाज की आबादी है। सबके जैसलमेर के स्वर्ण रंग के पत्थरों से निर्मित अच्छे पक्के मकान बने हुए हैं। मेहमानों के लिए मकान के बाहर एक बैठक सबके यहाँ बनी हुई है। पानी का टांका व गर्मियों में ठंडी हवा के लिए खीप का बना टपरा सबने बना रखा है। पीने के लिए नर्मदा नदी परियोजना के तहत पानी के कनेक्शन हो रखे हैं। स्थानीय पानी जो पीने में खारा लगता है उसे सब नहाने, कपड़े धोने में काम लेते हैं। बाड़मेर से प्रतिदिन एक प्राइवेट बस चलती है। पहले जैसा बाडमेर अब नहीं रह गया है। सुदूर स्थानों पर भी भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत खूब चौड़ी-चौड़ी सड़कें बनी हुई हैं। कुल मिलाकर प्रकृति का वास्तविक सौन्दर्य व शांति वहाँ देखने को मिली।
सूचना स्रोत एवं चित्र प्रदाता
श्री हंसराज ‘हंस’
प्रस्तुति
शब्दशिल्प