भूमिका
आशंकाओं से ग्रस्त भयभीत इंसान की सबसे बड़ी
जरूरत है उसको मिलने वाली नैतिक ताकत।
अतः इंसान को सिर्फ इतना समझकर एक दूसरे की
मौलिक ताकत बनना चाहिए। ना कि किसी भी रूप में
एक दूसरे को हतोत्साहित करना चाहिए।
“यह क्या कहा तुमने?”
हम साथ साथ नहीं हैं। यह जान लो तुम व मान लो कि
आशंकाओं से बाहर आ जाना जीने की श्रेष्ठ विधि है।
पकड़ने या छोड़ने के अतिरिक्त भी हैं जीवन के बंधन।
अदृश्य पर स्वयं को दृष्टव्य होते हैं वो सब ही बंधन।
स्नेह और ममता प्रेम के हैं रूप तो भाव अंतर के कारण।
जो समझ ना सके इतना भी तो धिक्कार है उस पर कि
आत्मा से आत्मा का बंधन या आकर्षण ही सर्वश्रेष्ठ है।
हम एक दूसरे की ताकत हैं यह मान लो तुम।
कुछ भी गलत ना करने की ठानी है तो ईशाशीष हैं साथ।
कर्म फल का रखते हैं ध्यान तो उनकी कृपा बनी रहेगी।