एलोपैथी बनाम नैचुरोपैथी

एलोपैथी बनाम नैचुरोपैथी

एलोपैथी की बढ़ती कीमतें बनाम नैचुरोपैथी की सहजता
रोगमुक्त जीवन की ओर एक विचारशील कदम

वर्तमान समय में जब एक ओर आमजन पहले से ही महँगाई, जीवनशैली जनित रोगों और मानसिक तनावों से जूझ रहा है, वहीं चिकित्सा की आवश्यकता भी एक अनिवार्य आवश्यकता बन चुकी है। ऐसे में चिकित्सा के मूलभूत साधनों – दवाओं की कीमतों में बार-बार वृद्धि एक चिंताजनक विषय बन गई है। एलोपैथी में प्रयोग होने वाली ब्लड शुगर और एलर्जी की दवाओं की कीमतें पहले ही चार माह पूर्व 10% बढ़ाई गई थीं, और अब पुनः इन पर 15% की और वृद्धि कर दी गई है, जबकि शासन द्वारा अधिकृत मूल्यवृद्धि केवल 1.74% तक सीमित रखी गई थी।

यह स्थिति स्पष्ट करती है कि चिकित्सा प्रणाली अब न केवल इलाज का माध्यम, बल्कि एक व्यावसायिक लाभ का केंद्र भी बन चुकी है। जब स्वास्थ्य को लाभ की वस्तु बना दिया जाता है, तो आम नागरिक का कल्याण पीछे छूटने लगता है।

एलोपैथी: तात्कालिक समाधान, दीर्घकालिक निर्भरता

एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली निस्संदेह आपातकालीन स्थितियों में जीवनरक्षक सिद्ध होती है। तेज़ असर, स्पष्ट निदान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण इसकी विशेषताएँ हैं। लेकिन, यह भी स्वीकार करना होगा कि एलोपैथी का मूल आधार ‘लक्षणों’ को दबाना है, न कि ‘कारणों’ को मिटाना। मधुमेह, एलर्जी, ब्लड प्रेशर, थायराइड जैसे रोगों के लिए आजीवन दवाइयों पर निर्भरता इसी प्रणाली की सबसे बड़ी विडंबना बन चुकी है।

साथ ही, जब इन दवाओं की कीमतें निरंतर बढ़ती जाएँगी, तो निम्न और मध्यम वर्ग के लिए उपचार की उपलब्धता भी सीमित हो जाएगी।

नैचुरोपैथी: प्रकृति के साथ संतुलन

इसके विपरीत नैचुरोपैथी (प्राकृतिक चिकित्सा) न केवल शरीर को बल्कि मन और आत्मा को भी संतुलित करने की दिशा में कार्य करती है। यह मानती है कि प्रकृति के पाँच तत्व – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – ही हमारे शरीर के संतुलन के आधार हैं। जब यह संतुलन बिगड़ता है, तो रोग जन्म लेते हैं।

नैचुरोपैथी का मुख्य आधार है –

* संतुलित आहार: बिना प्रसंस्कृत और रासायनिक तत्वों से मुक्त भोजन
* जल चिकित्सा:
ठंडे, गर्म और सामान्य
तापमान के जल से उपचार
* सूर्य स्नान व योगाभ्यास: शरीर को प्राकृतिक ऊर्जाओं से जोड़ना
* उपवास और आंतरिक शुद्धि: शरीर के भीतर से विषैले तत्वों का निष्कासन

इन उपायों को अपनाकर न केवल रोगों से बचा जा सकता है, बल्कि पहले से मौजूद कई रोगों को भी नियंत्रित और समाप्त किया जा सकता है।

आर्थिक दृष्टिकोण से नैचुरोपैथी

जहाँ एलोपैथिक दवाइयाँ व्यक्ति को जीवन भर निर्भर बनाए रखती हैं और आर्थिक रूप से बोझ बढ़ाती हैं, वहीं नैचुरोपैथी थोड़े से प्रयास और निरंतर अनुशासन से स्थायी स्वास्थ्य प्रदान करती है। इसमें अधिकांश उपचार विधियाँ घर में ही संभव हैं और बिना किसी आर्थिक भार के अपनाई जा सकती हैं।

निष्कर्ष

समय की माँग है कि हम केवल ‘चिकित्सित’ होने पर ध्यान न दें, बल्कि ‘स्वस्थ’ रहने की संस्कृति विकसित करें। एलोपैथी और नैचुरोपैथी को विरोधी नहीं, पूरक समझा जाए, लेकिन जब विषय रोगमुक्त जीवन की दीर्घकालिक सोच का हो, तो नैचुरोपैथी की ओर लौटना ही सबसे बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय होगा।

आइए, प्राकृतिक जीवनशैली को अपनाकर न केवल स्वास्थ्य, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी बोझ कम करें और स्वयं को आत्मनिर्भर व रोगमुक्त बनाएँ।
निवेदक
जनचेतना मिशन एवं उलझन सुलझन

Idea

जनचेतना मिशन

पाठ्य विस्तार

चैट gpt

प्रस्तुति